संगीनों के आगे सीना, खोल खड़ा था सन्यासी...⛳
सिंह सरीखा निर्भय था जो, कौन था वो गुरुकुलवासी
जिस दिन हुआ बरेली में था, दर्शन उसे दयानंद का...
उस दिन मुंशीराम के उर में, बीज पड़ा श्रद्धानंद का...
आस्तिकता के अंकुर फूटे, जीवन ने अंगड़ाई ली...
देश-धर्म का बना वो प्रहरी, जग से मोल लड़ाई ली...
नास्तिक मुंशीराम बन गया, पक्का ईश्वर-विश्वासी...
कौन था वो गुरुकुलवासी..?
किसने ‘शुद्धि’ की बजा बांसुरी, बिछड़े भाई बुलाये थे।
किसने घटती आबादी पर, सारे हिन्दू चेताये थे...
किसने उद्धार किया दलितों का, जाति के बंधन तोड़े...
छुआछूत का भेद मिटाया, दिल से दिल के रिश्ते जोड़े...
दृढ़ संकल्पी पर उपकारी, संस्कृत प्रेमी हिन्दीभाषी...
कौन था वो गुरुकुलवासी..?
गाँधी ने जिसके चरण छुए, हरजन ने जिसको नमन किया।
गुरुकुल की शिक्षा ज़िन्दा की, वेदों का फिर से स्तवन किया।
‘शुद्धि’ का चक्र नहीं थमता, भारत का विभाजन न होता..!
यदि श्रद्धानंद-सा राष्ट्रभक्त, मृत्यु की नींद नहीं सोता..!
अंग्रेजों का प्रबल विरोधी, संघर्षों का अभ्यासी...
कौन था वो गुरुकुलवासी..?
था पलंग पर निपट अकेला, रुग्ण-निहत्था सन्यासी...
मार के गोली प्राण ले गया, ‘अब्दुल रशीद’ सत्यानाशी...
एक बार देखा फिर जग ने, नंगा चेहरा इस्लाम का...
मानवता का शत्रु है ये, मज़हब नहीं ईमान का..!
राष्ट्र-यज्ञ में स्वाह हो गया, सबकी मुक्ति का अभिलाषी...