नवरात्र आते ही कुछ मूर्खों की टोलियां विधवा विलाप प्रारम्भ कर देती हैं। हर औरत(नारी) देवी दुर्गा की रूप हैं। मंदिर में तो देवी की पूजा करते हैं पर बाहर में स्त्रियों का अपमान करतें हैं।
एक अंश में इनका कथन उचित है क्योंकि कहा भी है कि स्त्रिया: समस्ता: सकला जगत्सु
अर्थात
"हे जगदंबा ! जगत् की समस्त स्त्रियां तुम्हारा ही स्वरूप हैं।"
लेकिन रुकिए... यहाँ समस्ता का अर्थ सभी नहीं हैं अपितु वे सभी हैं जिस स्त्री में लज्जा है, जो शास्त्रानुरूप आचरण करतीं हैं, जो समग्र शास्त्रों में वर्णित विधिनिषेध का पालन करतीं हैं। इसीलिए सर्वप्रथम देवी के इस रूप के अनुसार आचरण कीजिये।
या_देवी_सर्वभूतेषु_लज्जा_रूपेण_संस्थिता
तब ही यह सोचियेगा कि आप देवी की स्वरूप हैं। यदि आपने ऐसा कर लिया तो कोई भी हो, आपका सम्मान अवश्य करेगा। एक बार अपने वस्त्रों और देवी के वस्त्रों को जरूर देख लीजियेगा... अर्धकटीं न्याय नहीं चलेगा। कुछ इधर का मान लिया, कुछ उधर का और लगे चिल्लाने।
पाश्चात्य संस्कृति का पालन करते हुए समाज में अपना अंग प्रदर्शन कीजियेगा और अपने को भोग की वस्तु के रूप में स्थापित कीजियेगा तो असम्भव ही है कि कोई आपका सम्मान करे। अपनी मर्यादा में रहिए, सम्मान और आपकी पूजा आवश्य होगी। अपनी मर्यादा का अतिक्रमण कर के आप स्वछंद आचरण करके सम्मान चाहियेगा तो फिर वही होगा जो शूर्पणखा के साथ हुआ था।
#लछिमन_अति_लाघवँ_सो_नाक_कान_बिनु_कीन्हि।
लक्ष्मण जी ने बड़ी फुर्ती से उसको बिना नाक-कान की कर दिया।
अतः अपने अंदर सीता, पद्मावती के समान व्यवहार आचार विचार लाने का प्रयत्न कीजिये... नहीं तो शूर्पणखा के जैसा हालत होगा तो फिर इधर-उधर सर पीटते रहिये। कोई रावण ही होगा जो आपकी सुनेगा। सनातन में लिंग विषेश का नहीं, चरित्र की पूजा करने का आदेश हैं।
#आचारहीनं_न_पुनन्ति_वेदा
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।