मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

विश्व की अब तक की सबसे महंगी जमीन...

#अभूतपूर्व_अद्वितीय_पूज़्यनीय_अद्भुत 

मित्रों... क्या आप जानते हैं कि विश्व में आज तक की सबसे महंगी ज़मीन कहाँ पर बिकी हैं..?

लंदन में..? पैरिस में.. न्यू यॉर्क में..? नहीं...
विश्व में आज तक किसी एक भूमि के टुकड़े का सबसे अधिक दाम चुकाया गया हैं। हमारे भारत में ही पंजाब में स्थित में...
और विश्व की इस सबसे महंगी भूमि को ख़रीदने वाले महान व्यक्ति का नाम था... दीवान टोडर मल

गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे-छोटे साहिबज़ादों बाबा फ़तह सिंह और बाबा ज़ोरावर सिंह की शहादत की दास्तान शायद आप सबने कभी ना कभी, कहीं ना कहीं से सुनी होगी... 
यहीं सिरहिन्द के फ़तहगढ़ साहिब में मुग़लों के तत्कालीन फ़ौजदार वज़ीर खान ने दोनो साहिबज़ादों को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था।
दीवान टोडर मल जो कि इस क्षेत्र के एक धनी व्यक्ति थे और गुरु गोविंद सिंह जी एवं उनके परिवार के लिए अपना सब कुछ क़ुर्बान करने को तैयार थे, उन्होंने वज़ीर खान से साहिबज़ादों के पार्थिव शरीर की माँग की और वह भूमि जहाँ वह शहीद हुए थे। वहीं पर उनकी अंत्येष्टि करने की इच्छा प्रकट की...
वज़ीर खान ने धृष्टता दिखाते हुए भूमि देने के लिए एक अटपटी और अनुचित माँग रखी... वज़ीर खान ने माँग रखी कि इस भूमि पर सोने की मोहरें बिछाने पर जितनी मोहरें आएँगी, वही इस भूमि का दाम होगा... 
दीवान टोडर मल के अपने सब भंडार ख़ाली करके जब मोहरें भूमि पर बिछानी शुरू कीं तो वज़ीर खान ने धृष्टता की पराकाष्ठा पार करते हुए कहा कि मोहरें बिछा कर नहीं... बल्कि खड़ी करके रखी जाएँगी... ताकि अधिक से अधिक मोहरें वसूली जा सकें... ख़ैर... दीवान टोडर माल ने अपना सब कुछ बेच-बाच कर और मोहरें इकट्ठी कीं और 78000 सोने की मोहरें देकर चार गज़ भूमि को ख़रीदा ताकि गुरु जी के साहिबज़ादों का अंतिम संस्कार वहाँ किया जा सके...
विश्व के इतिहास में ना सिरहिन्द जैसे त्याग की कहीं कोई और मिसाल मिलती हैं, ना ही कहीं पर किसी भूमि के टुकड़े का इतना भारी मूल्य कहीं और आज तक चुकाया गया।

जब बाद में गुरु गोविन्द सिंह जी को इस बारे में पता चला तो उन्होंने दीवान टोडर मल से कृतज्ञता प्रकट की और उनसे कहा की... वे उनके त्याग से बहुत प्रभावित हैं और उनसे इस त्याग के बदले में कुछ माँगने को कहा...

ज़रा सोचिए... 
दीवान टोडर मल ने क्या माँगा होगा... गुरु जी से...
दीवान जी ने गुरु जी से जो माँगा... उसकी_कल्पना_करना_भी_असम्भव_है !

दीवान टोडर मल जी ने गुरु जी से कहा कि यदि कुछ देना ही चाहते हैं तो कुछ ऐसा वर दीजिए की 'मेरे घर पर कोई पुत्र ना जन्म लें और मेरी वंशावली यहीं मेरे साथ ही समाप्त हो जाए। इस अप्रत्याशित माँग पर गुरु जी सहित सब लोग हक्के-बक्के रह गए... गुरु जी ने दीवान जी से इस अद्भुत माँग का कारण पूछा तो दीवान जी का उत्तर ऐसा था जो रोंगटे खड़े कर दें...
दीवान टोडर मल ने उत्तर दिया कि गुरु जी... यह जो भूमि इतना महंगा दाम देकर ख़रीदी गयी और आपके चरणों में न्योछावर की गयी, मैं नहीं चाहता की कल को मेरे वंश आने वाली नस्लों में से कोई कहे कि यह भूमि मेरे पुरखों ने ख़रीदी थी।
यह थी निस्वार्थ त्याग और भक्ति की आज तक की सबसे बड़ी मिसाल...
आज किसी धार्मिक स्थल पर चार ईंटे लगवाने पर भी लोग अपने नाम_की_पट्टी पहले लगवाते हैं... एक_पंखा तक लगवाने पर उसके परों पर #अपने_नाम_छपवाते हैं...
आज देश में एक #फ़र्ज़ी_बलिदानी_परिवार अपने आप को सबसे बड़ा बलिदान का प्रतीक बताते हुए पिछले #सत्तर_वर्षों_से_देशवासियों_को मूर्ख_बना_रहा_है।

हमारे पुरखे जो-जो बलिदान देकर गए हैं, वह अभूतपूर्व है और इन्ही बलिदानों के कारण ही हम लोगों का अस्तित्व अभी तक है... हमारी इतनी औक़ात नहीं कि हम इस बलिदान के हज़ारवें भाग का भी ऋण उतार सकें।

यह सब जिन दिनों में हुआ यह वही दिसम्बर के आखरी सप्ताह के दिन थे जिन दिनों में आज कल हम #मूर्ख_भारतीय जोकर जैसे कपड़े पहन कर क्रिसमस जैसे विदेशी त्योहार मनाते हुए #बेगानी_शादी_में_दीवाने हुए जाते हैं।

रविवार, 8 दिसंबर 2019

#संघ_वाला_जमाई⛳

मेरे मात -पिता के मन में, सखी
जाने क्या थी बात समाई 
देखा उन्होंने मेरे लिए, जो
एक "संघ" वाला जमाई ।

क्या कहूँ बहन मुझे न जाने 
क्या -क्या सहन करना होता हैं!
'इनके' घर आने -जाने का 
कोई निश्चित समय न होता है।

कभी कहें दो लोगों का भोजन 
कभी दस का भी बनवाते है
जब चाहे ये घर पर बहना 
अधिकारियो को ले आते है।

लाठी, नीकर, दरी-चादर बांध 
बस ये तो फरमान सुनाते है 
शिविर में जाना हर माह इन्हें
बिस्तर बांध निकल जाते है।

प्रातः शाखा, शाम को बैठक
कार्यक्रम अनेको होते हैं...
दो बोल प्रेम से जो बोल सके मुझे 
वो बोल ही इनपर न होते है।

इनकी व्यस्त दिनचर्या से बहना 
कभी -कभी तंग बहुत आ जाती हूँ।
ये तो घर पर ज्यादा न रह पाते
मैं मायके भी न जा पाती हूँ ।

#पर...

ख़ुशी मुझे इस बात की है होती
और "गर्व" बहुत ही होता हैं।
मेरे "इनके" अंदर एक चरित्रवान इंसान
"स्वयंसेवक" के रूप में रहता है।

आज के कलुषित वातावरण में भी, जो
नियमो से जीवन जी रहा
"संघ" के कारण अनुशाषित जीवन 
और सार्थक राह पर चल रहा।

उनके कारण मैं भी तो बहन 
कुछ राष्ट्र कार्य कर पाती हूँ।
प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष रूप से 
इस हवन में आहुति दे पाती हूँ।

इसीलिए नहीं कोई शिकायत 
मैं अपने मात-पिता से करती हूँ।
एक स्वयंसेवक के रूप में "संस्कारी" पाया
बस ह्रदय से धन्यवाद उनका करती हूँ।

🙏🏻भारत माता की जय⛳