मंगलवार, 11 सितंबर 2018

क्या है महादेव द्वारा श्री गणेश के हाथी का सिर लगाने का वैज्ञानिक रहस्य?

कुछ लोगो का हमेशा ये कहना होता है कि गणेश बस एक कल्पना है किसी इंसान के सर की जगह किसी हाथी का सर कैसे हो सकता है? सर कटते ही किसी की मृत्यु हो जाती है फिर गणेश का सर कटने पे मृत्यु क्यों नही हुए सब कल्पना है। पर आज हम बताएँगे कि क्या यह सब सच में विज्ञान के विरुद्ध है?

क्या सच मे इंसान की मृत्यु सर कटने से हो जाती है? —
ब्रेन डेथ को मौत का कनफर्मेशन नहीं माना जाता। बल्कि दिल के रुकने को डेथ कनफर्मेशन माना जाता है। हालाकिं दिल रुकने के बाद फिर चलते हुए देखा गया है और इसी प्रकार कोमा की हालत मे दिमाग काम करना बंद कर देता है! लकिन इसके बाद भी इंसानो को जीवित देखा गया है! कोमा की हालत मे ब्रैन डेड को पहचानने के लिये आप्नोवा नामक एक टेस्ट किया जाता है! जिससे पता चलता है कि ब्रेन डेथ(सर कटने जैसा ही) होने पे भी अभी इंसान जीवित है।
उदहारण – कॉकरोच का सर कट जाने पे भी वो जीवित रहता है और उसकी मृत्यू सर कटने से नही बल्कि भूखा रहने से होती है|

क्या किसी इंसान के सर की जगह हाथी का सर लगाना संभव नही है ? —
मैं आपको आधुनिक समय के उदहारण के साथ समझाता हूं –
(क) – ईरान के एक सैनिक ने बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ गँवा दिए और 3 साल के बाद एक मृत व्यक्ति के दोनों हाथ उंसके हाथों के साथ जोड़ दिए गए और आज वो सैनिक आसान और सामान्य जीवन बिता रहा है|

(ख)- बॉल्टमॉर में रहने वाले 10 साल के जियॉन हार्वे दुनिया का पहला इंसान है, जिसके दोनों हाथों का सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किया गया। मानव अंगों के ट्रांसप्लांट के क्षेत्र में यह बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। जुलाई 2015 में 8 साल के जियॉन का ट्रांसप्लांट किया गया था। इस बात को अब 2 साल हो चुके हैंऔर जियॉन के दोनों हाथों बिल्कुल स्वस्थ हैं।

(ग) – अब जल्द ही इंसान के सिर का प्रत्यारोपण भी संभव हो सकेगा। वैज्ञानिक चूहे और कुत्ते पर पॉलीथैलीन ग्लाइकोल (पीआईजी) केमिकल का प्रयोग कर उनकी रीढ़ की हड्डी को फिर से जोड़ने में कामयाब हो गए हैं। अगली बारी अब इंसानों की है और दावा किया जा रहा है कि जल्द ही जानवरों के साथ ही मनुष्यों पर भी इस प्रयोग को आजमाया जाएगा।

(घ) – दक्षिण कोरिया के कोनकुक यूनवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पांच चूहों पर पीआईजी का परीक्षण किया। इनमें से चार की मौत हो गई जबकि पांचवें चूहे में सर्जरी के दो दिन बाद कुछ हरकते देखी गई। दो सप्ताह के अंदर यह चूहा इधर-उधर घूमने लगा। चूहा अपने अंगों के बलबूते खड़ा हो गया और खुद से खाने भी लगा।

(ङ) – कुत्ते पर पीआईजी केमिकल का परीक्षण किया और देखा कि तीन हफ्ते के अंदर उसकी रीढ़ की हड्डी ठीक से काम करने लगी। इसकी वीडियो फुटेज भी दिखाई गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि दो हफ्ते के अंदर कुत्ता अपनी आगे के दो पैरो पर खड़ा हुआ और उसके बाद तीसर हफ्ते के अंदर ही वो पहले की तरह चलने लगा। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि इतने शोधभर से ही मनुष्यों पर यह प्रयोग नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा रशिया के वैज्ञानिक हेड ट्रांसप्लांट का दावा करते रहे हैं।

मुख्य भाग – इटली के डॉक्टर इस वर्ष के अंत तक दुनिया की पहली ‘हेड ट्रांसप्लांट’ सर्जरी करने जा रहे हैं। डॉ. सर्जियो केनावेरो ने बताया कि यह सर्जरी रूस के 31 साल के वेलरी स्पिरीडोनोव पर की जाएगी, जो एक कंप्यूटर वैज्ञानिक हैं।
स्‍पिरीडोनोव मांसपेशी खराब कर देने वाले रोग ‘वर्डनिंग-हॉफमैन डिजीज’ से जूझ रहे हैं और फिलहाल ह्वीलचेयर पर हैं। डॉक्टरों के मुताबिक, इस ऑपरेशन के बाद वह वयस्क जीवन में पहली बार अपने पैरों पर चल पाएंगे। एक ब्रेन डेड डोनर का सिर उनके शरीर पर लगाया जाएगा।
सिर को लगाने से तुरंत पहले इसे बेहद ठंडे तापमान में रखा जाएगा ताकि रक्तस्राव को रोका जा सके। इस पूरी प्रक्रिया में 150 डॉक्टर व विशेषज्ञ शामिल होंगे। चा‌र्ल्स ओ स्ट्रीकर ट्रांसप्लांट सेंटर के डायरेक्टर डॉक्टर जोस ओबरहोर्जर ने कहा, ‘किसी भी कामयाब ट्रांसप्लांट के लिए आपको इम्यून सिस्टम को बचाना होता है। ऐसा इसलिए ताकि शरीर किसी नए अंग को अपना सके। साथ ही, इस बात का ध्यान रखना होता है कि सर्जरी के बाद कोई संक्रमण न फैले।’

आधुनिक विज्ञान से कही अग्रणी हमारा वैदिक विज्ञान इस तकनीक को पहले ही विकसित कर चुका था। हमे वेदों में छुपे विज्ञान को रिसर्च की जरूरत है । गणेश एक कल्पना नही बल्कि एक सत्य है जिसे आधुनिक विज्ञान भी झूठा नही सिद्ध कर सकता।

– अजेष्ठ त्रिपाठी, लेखक मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया निवासी हैं और हिन्दू धर्म, संस्कृति, इतिहास के गहन जानकार और शोधकर्ता हैं।

शनिवार, 8 सितंबर 2018

गुरु, आचार्य, पुरोहित, पंडित और पुजारी में क्या फर्क होता हैं, आइए जानते हैं...

अक्सर लोग पुजारी को पंडित जी या पुरोहित को आचार्य भी कह देते हैं और सुनने वाले भी उन्हें सही ज्ञान नहीं दे पाता है। यह विशेष पदों के नाम हैं जिनका किसी जाति विशेष से कोई संबंध नहीं। आओ हम जानते हैं कि उक्त शब्दों का सही अर्थ क्या है ताकि आगे से हम किसी पुजारी को पंडित न कहें।
गुरु: गु का अर्थ अंधकार और रु का अर्थ प्रकाश। अर्थात जो व्यक्ति आपको अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए वह गुरु होता है। गुरु का अर्थ अंधकार का नाश करने वाला। अध्यात्मशास्त्र अथवा धार्मिक विषयों पर प्रवचन देने वाले व्यक्तियों में और गुरु में बहुत अंतर होता है। गुरु आत्म विकास और परमात्मा की बात करता है। प्रत्येक गुरु संत होते ही हैं; परंतु प्रत्येक संत का गुरु होना आवश्यक नहीं है। केवल कुछ संतों में ही गुरु बनने की पात्रता होती है। गुरु का अर्थ ब्रह्म ज्ञान का मार्गदर्शक।

आचार्य : आचार्य उसे कहते हैं जिसे वेदों और शास्त्रों का ज्ञान हो और जो गुरुकुल में ‍विद्यार्थियों को शिक्षा देने का कार्य करता हो। आचार्य का अर्थ यह कि जो आचार, नियमों और सिद्धातों आदि का अच्छा ज्ञाता हो और दूसरों को उसकी शिक्षा देता हो। वह जो कर्मकाण्ड का अच्छा ज्ञाता हो और यज्ञों आदि में मुख्य पुरोहित का काम करता हो उसे भी आचार्य कहा जाता था। आजकल आचार्य किसी महाविद्यालय के प्रधान अधिकारी और अध्यापक को कहा जाता है।

पुरोहित : पुरोहित दो शब्दों से बना है:- 'पर' तथा 'हित', अर्थात ऐसा व्यक्ति जो दुसरो के कल्याण की चिंता करे। पुरोहित वह प्रधान याजक जो राजा या और किसी यजमान के यहाँ अगुआ बनकर यज्ञादि श्रौतकर्म, गृहकर्म और संस्कार तथा शांति आदि अनुष्ठान करे कराए । कर्मकांड करनेवाला । कृत्य करनेवाला ब्राह्मण । वैदिक काल में पुरोहित का बड़ा अधिकार था और वह मंत्रियों में गिना जाता था । पहले पुरोहित यज्ञादि के लिये नियुक्त किए जाते थे । आजकल वे कर्मकांड करने के अतिरिक्त, यजमान की और से देवपूजन आदि भी करते हैं, यद्यपि स्मृतियों में किसी की ओर से देवपूजन करनेवाले ब्राह्मण का स्थान बहुत नीचा कहा गया है । पुरोहित का पद कुलपरंपरागत चलता है । अतः विशेष कुलों के पुरोहित भी नियत रहते हैं । उस कुल में जो होगा वह अपना भाग लेगा, चाहे कृत्य कोई दूसरा ब्राह्मण ही क्यों न कराए । उच्च ब्राह्मणों में पुरोहित कुल अलग होते हैं जो यजमानों के यहाँ दान आदि लिया करते हैं।वर्तमान में पुरोहित को प्रौत जी भी कहा जाता हैं...


पुजारी : पूजा और पाठ से संबंधित इस शब्द का अर्थ स्वत: ही प्रकाट होता है। अर्थात जो मंदिर या अन्य किसी स्थान पर पूजा पाठ करता हो वह पुजारी। किसी देवी-देवता की मूर्ति या प्रतिमा की पूजा करने वाले व्यक्ति को पुजारी कहा जाता है।

पंडित : पंडः का अर्थ होता है विद्वता। किसी विशेष ज्ञान में पारंगत होने को ही पांडित्य कहते हैं। पंडित का अर्थ होता है किसी ज्ञान विशेष में दश या कुशल। इसे विद्वान या निपुण भी कह सकते हैं। किसी विशेष विद्या का ज्ञान रखने वाला ही पंडित होता है। प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि के बहुत बड़े ज्ञाता को पंडित कहा जाता था। इस पंडित को ही पाण्डेय, पाण्डे, पण्ड्या कहते हैं। आजकल यह नाम ब्रह्मणों का उपनाम भी बन गया है। कश्मीर के ब्राह्मणों को तो कश्मीरी पंडितों के नाम से ही जाना जाता है। पंडित की पत्नी को देशी भाषा में पंडिताइन कहने का चलन है।

ब्राह्मण : ब्राह्मण शब्द ब्रह्म से बना है। जो ब्रह्म (ईश्वर) को छोड़कर अन्य किसी को नहीं पूजता, वह ब्राह्मण कहा गया है। जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है। जो ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से अपनी जीविका चलाता है वह ब्राह्मण नहीं, ज्योतिषी है। पंडित तो किसी विषय के विशेषज्ञ को कहते हैं और जो कथा बांचता है वह ब्राह्मण नहीं कथावाचक है। इस तरह वेद और ब्रह्म को छोड़कर जो कुछ भी कर्म करता है वह ब्राह्मण नहीं है। जिसके मुख से ब्रह्म शब्द का उच्चारण नहीं होता रहता, वह ब्राह्मण नहीं।

स्मृति पुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। 8 प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं। ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है जिसका किसी जाति या समाज से कोई संबंध नहीं।

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

बलात्कार का आरंभ

यौन अपराध #इस्लाम की देन...

आखिर भारत जैसे देवियों को पूजने वाले देश में बलात्कार की गन्दी मानसिकता कहाँ से आई...

आखिर क्या बात है कि जब प्राचीन भारत के रामायण, महाभारत आदि लगभग सभी हिन्दू-ग्रंथ के उल्लेखों में अनेकों लड़ाईयाँ लड़ी और जीती गयीं, परन्तु विजेता सेना द्वारा किसी भी स्त्री का बलात्कार होने का जिक्र नहीं है।

तब आखिर ऐसा क्या हो गया कि आज के आधुनिक भारत में बलात्कार रोज की सामान्य बात बन कर रह गयी है ??

~श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त की पर न ही उन्होंने और न उनकी सेना ने पराजित लंका की स्त्रियों को हाथ लगाया ।

~महाभारत में पांडवों की जीत हुयी लाखों की संख्या में योद्धा मारे गए। पर किसी भी पांडव सैनिक ने किसी भी कौरव सेना की विधवा स्त्रियों को हाथ तक न लगाया ।

अब आते हैं ईसापूर्व इतिहास में~

220-175 ईसापूर्व में यूनान के शासक "डेमेट्रियस प्रथम" ने भारत पर आक्रमण किया। 183 ईसापूर्व के लगभग उसने पंजाब को जीतकर साकल को अपनी राजधानी बनाया और पंजाब सहित सिन्ध पर भी राज किया। लेकिन उसके पूरे समयकाल में बलात्कार का कोई जिक्र नहीं।

~इसके बाद "युक्रेटीदस" भी भारत की ओर बढ़ा और कुछ भागों को जीतकर उसने "तक्षशिला" को अपनी राजधानी बनाया। बलात्कार का कोई जिक्र नहीं।

~"डेमेट्रियस" के वंश के मीनेंडर (ईपू 160-120) ने नौवें बौद्ध शासक "वृहद्रथ" को पराजित कर सिन्धु के पार पंजाब और स्वात घाटी से लेकर मथुरा तक राज किया परन्तु उसके शासनकाल में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं मिलता।

~"सिकंदर" ने भारत पर लगभग 326-327 ई .पू आक्रमण किया जिसमें हजारों सैनिक मारे गए । इसमें युद्ध जीतने के बाद भी राजा "पुरु" की बहादुरी से प्रभावित होकर सिकंदर ने जीता हुआ राज्य पुरु को वापस दे दिया और "बेबिलोन" वापस चला गया ।

विजेता होने के बाद भी "यूनानियों" (यवनों) की सेनाओं ने किसी भी भारतीय महिला के साथ बलात्कार नहीं किया और न ही "धर्म परिवर्तन" करवाया ।

~इसके बाद "शकों" ने भारत पर आक्रमण किया (जिन्होंने ई.78 से शक संवत शुरू किया था)। "सिन्ध" नदी के तट पर स्थित "मीननगर" को उन्होंने अपनी राजधानी बनाकर गुजरात क्षेत्र के सौराष्ट्र , अवंतिका, उज्जयिनी,गंधार,सिन्ध,मथुरा समेत महाराष्ट्र के बहुत बड़े भू भाग पर 130 ईस्वी से 188 ईस्वी तक शासन किया। परन्तु इनके राज्य में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं।

~इसके बाद तिब्बत के "युइशि" (यूची) कबीले की लड़ाकू प्रजाति "कुषाणों" ने "काबुल" और "कंधार" पर अपना अधिकार कायम कर लिया। जिसमें "कनिष्क प्रथम" (127-140ई.) नाम का सबसे शक्तिशाली सम्राट हुआ।जिसका राज्य "कश्मीर से उत्तरी सिन्ध" तथा "पेशावर से सारनाथ" के आगे तक फैला था। कुषाणों ने भी भारत पर लम्बे समय तक विभिन्न क्षेत्रों में शासन किया। परन्तु इतिहास में कहीं नहीं लिखा कि इन्होंने भारतीय स्त्रियों का बलात्कार किया हो ।

~इसके बाद "अफगानिस्तान" से होते हुए भारत तक आये "हूणों" ने 520 AD के समयकाल में भारत पर अधिसंख्य बड़े आक्रमण किए और यहाँ पर राज भी किया। ये क्रूर तो थे परन्तु बलात्कारी होने का कलंक इन पर भी नहीं लगा।

~इन सबके अलावा भारतीय इतिहास के हजारों साल के इतिहास में और भी कई आक्रमणकारी आये जिन्होंने भारत में बहुत मार काट मचाई जैसे "नेपालवंशी" "शक्य" आदि। पर बलात्कार शब्द भारत में तब तक शायद ही किसी को पता था।

अब आते हैं मध्यकालीन भारत में~

जहाँ से शुरू होता है इस्लामी आक्रमण~

और यहीं से शुरू होता है भारत में बलात्कार का प्रचलन ।

~सबसे पहले 711 ईस्वी में "मुहम्मद बिन कासिम" ने सिंध पर हमला करके राजा "दाहिर" को हराने के बाद उसकी दोनों "बेटियों" को "यौनदासियों" के रूप में "खलीफा" को तोहफा भेज दिया।

तब शायद भारत की स्त्रियों का पहली बार बलात्कार जैसे कुकर्म से सामना हुआ जिसमें "हारे हुए राजा की बेटियों" और "साधारण भारतीय स्त्रियों" का "जीती हुयी इस्लामी सेना" द्वारा बुरी तरह से बलात्कार और अपहरण किया गया ।

~फिर आया 1001 इस्वी में "गजनवी"। इसके बारे में ये कहा जाता है कि इसने "इस्लाम को फ़ैलाने" के उद्देश्य से ही आक्रमण किया था।

"सोमनाथ के मंदिर" को तोड़ने के बाद इसकी सेना ने हजारों "काफिर औरतों" का बलात्कार किया फिर उनको अफगानिस्तान ले जाकर "बाजारों में बोलियाँ" लगाकर "जानवरों" की तरह "बेच" दिया ।

~फिर "गौरी" ने 1192 में "पृथ्वीराज चौहान" को हराने के बाद भारत में "इस्लाम का प्रकाश" फैलाने के लिए "हजारों काफिरों" को मौत के घाट उतर दिया और उसकी "फौज" ने "अनगिनत हिन्दू स्त्रियों" के साथ बलात्कार कर उनका "धर्म-परिवर्तन" करवाया।

~ये विदेशी मुस्लिम अपने साथ औरतों को लेकर नहीं आए थे।

~मुहम्मद बिन कासिम से लेकर सुबुक्तगीन, बख्तियार खिलजी, जूना खाँ उर्फ अलाउद्दीन खिलजी, फिरोजशाह, तैमूरलंग, आरामशाह, इल्तुतमिश, रुकुनुद्दीन फिरोजशाह, मुइजुद्दीन बहरामशाह, अलाउद्दीन मसूद, नसीरुद्दीन महमूद, गयासुद्दीन बलबन, जलालुद्दीन खिलजी, शिहाबुद्दीन उमर खिलजी, कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी, नसरत शाह तुगलक, महमूद तुगलक, खिज्र खां, मुबारक शाह, मुहम्मद शाह, अलाउद्दीन आलम शाह, बहलोल लोदी, सिकंदर शाह लोदी, बाबर, नूरुद्दीन सलीम जहांगीर,

~अपने हरम में "8000 रखैलें रखने वाला शाहजहाँ"।

~ इसके आगे अपने ही दरबारियों और कमजोर मुसलमानों की औरतों से अय्याशी करने के लिए "मीना बाजार" लगवाने वाला "जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर"।

~मुहीउद्दीन मुहम्मद से लेकर औरंगजेब तक बलात्कारियों की ये सूची बहुत लम्बी है। जिनकी फौजों ने हारे हुए राज्य की लाखों "काफिर महिलाओं" "(माल-ए-गनीमत)" का बेरहमी से बलात्कार किया और "जेहाद के इनाम" के तौर पर कभी वस्तुओं की तरह "सिपहसालारों" में बांटा तो कभी बाजारों में "जानवरों की तरह उनकी कीमत लगायी" गई।

~ये असहाय और बेबस महिलाएं "हरमों" से लेकर "वेश्यालयों" तक में पहुँची। इनकी संतानें भी हुईं पर वो अपने मूलधर्म में कभी वापस नहीं पहुँच पायीं।

~एकबार फिर से बता दूँ कि मुस्लिम "आक्रमणकारी" अपने साथ "औरतों" को लेकर नहीं आए थे।

~वास्तव में मध्यकालीन भारत में मुगलों द्वारा "पराजित काफिर स्त्रियों का बलात्कार" करना एक आम बात थी क्योंकि वो इसे "अपनी जीत" या "जिहाद का इनाम" (माल-ए-गनीमत) मानते थे।

~केवल यही नहीं इन सुल्तानों द्वारा किये अत्याचारों और असंख्य बलात्कारों के बारे में आज के किसी इतिहासकार ने नहीं लिखा।

~बल्कि खुद इन्हीं सुल्तानों के साथ रहने वाले लेखकों ने बड़े ही शान से अपनी कलम चलायीं और बड़े घमण्ड से अपने मालिकों द्वारा काफिरों को सबक सिखाने का विस्तृत वर्णन किया।

~गूगल के कुछ लिंक्स पर क्लिक करके हिन्दुओं और हिन्दू महिलाओं पर हुए "दिल दहला" देने वाले अत्याचारों के बारे में विस्तार से जान पाएँगे। वो भी पूरे सबूतों के साथ।

~इनके सैकड़ों वर्षों के खूनी शासनकाल में भारत की हिन्दू जनता अपनी महिलाओं का सम्मान बचाने के लिए देश के एक कोने से दूसरे कोने तक भागती और बसती रहीं।

~इन मुस्लिम बलात्कारियों से सम्मान-रक्षा के लिए हजारों की संख्या में हिन्दू महिलाओं ने स्वयं को जौहर की ज्वाला में जलाकर भस्म कर लिया।

~ठीक इसी काल में कभी स्वच्छंद विचरण करने वाली भारतवर्ष की हिन्दू महिलाओं को भी मुस्लिम सैनिकों की दृष्टि से बचाने के लिए पर्दा-प्रथा की शुरूआत हुई।

~महिलाओं पर अत्याचार और बलात्कार का इतना घिनौना स्वरूप तो 17वीं शताब्दी के प्रारंभ से लेकर 1947 तक अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में भी नहीं दिखीं। अंग्रेजों ने भारत को बहुत लूटा परन्तु बलात्कारियों में वे नहीं गिने जाते।

~1946 में मुहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्टर एक्शन प्लान, 1947 विभाजन के दंगों से लेकर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम तक तो लाखों काफिर महिलाओं का बलात्कार हुआ या फिर उनका अपहरण हो गया। फिर वो कभी नहीं मिलीं।

~इस दौरान स्थिती ऐसी हो गयी थी कि "पाकिस्तान समर्थित मुस्लिम बहुल इलाकों" से "बलात्कार" किये बिना एक भी "काफिर स्त्री" वहां से वापस नहीं आ सकती थी।

~जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आ भी गयीं वो अपनी जांच करवाने से डरती थी।

~जब डॉक्टर पूछते क्यों तब ज्यादातर महिलाओं का एक ही जवाब होता था कि "हमपर कितने लोगों ने बलात्कार किये हैं ये हमें भी पता नहीं"।

~विभाजन के समय पाकिस्तान के कई स्थानों में सड़कों पर काफिर स्त्रियों की "नग्न यात्राएं (धिंड) "निकाली गयीं, "बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं"

~और 10 लाख से ज्यादा की संख्या में उनको दासियों की तरह खरीदा बेचा गया।

~20 लाख से ज्यादा महिलाओं को जबरन मुस्लिम बना कर अपने घरों में रखा गया। (देखें फिल्म "पिंजर" और पढ़ें पूरा सच्चा इतिहास गूगल पर)।

~इस विभाजन के दौर में हिन्दुओं को मारने वाले सबके सब विदेशी नहीं थे। इन्हें मारने वाले स्थानीय मुस्लिम भी थे।

~वे समूहों में कत्ल से पहले हिन्दुओं के अंग-भंग करना, आंखें निकालना, नाखुन खींचना, बाल नोचना, जिंदा जलाना, चमड़ी खींचना खासकर महिलाओं का बलात्कार करने के बाद उनके "स्तनों को काटकर" तड़पा-तड़पा कर मारना आम बात थी।

अंत में कश्मीर की बात~

~19 जनवरी 1990~

~सारे कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया जिसमें लिखा था~ "या तो मुस्लिम बन जाओ या मरने के लिए तैयार हो जाओ या फिर कश्मीर छोड़कर भाग जाओ लेकिन अपनी औरतों को यहीं छोड़कर "।

~लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी पण्डित संजय बहादुर उस मंजर को याद करते हुए आज भी सिहर जाते हैं।

~वह कहते हैं कि "मस्जिदों के लाउडस्पीकर" लगातार तीन दिन तक यही आवाज दे रहे थे कि यहां क्या चलेगा, "निजाम-ए-मुस्तफा", 'आजादी का मतलब क्या "ला इलाहा इलल्लाह", 'कश्मीर में अगर रहना है, "अल्लाह-ओ-अकबर" कहना है।

~और 'असि गच्ची पाकिस्तान, बताओ "रोअस ते बतानेव सान" जिसका मतलब था कि हमें यहां अपना पाकिस्तान बनाना है, कश्मीरी पंडितों के बिना मगर कश्मीरी पंडित महिलाओं के साथ।

~सदियों का भाईचारा कुछ ही समय में समाप्त हो गया जहाँ पंडितों से ही तालीम हासिल किए लोग उनकी ही महिलाओं की अस्मत लूटने को तैयार हो गए थे।

~सारे कश्मीर की मस्जिदों में एक टेप चलाया गया। जिसमें मुस्लिमों को कहा गया की वो हिन्दुओं को कश्मीर से निकाल बाहर करें। उसके बाद कश्मीरी मुस्लिम सड़कों पर उतर आये।

~उन्होंने कश्मीरी पंडितों के घरों को जला दिया, कश्मीर पंडित महिलाओ का बलात्कार करके, फिर उनकी हत्या करके उनके "नग्न शरीर को पेड़ पर लटका दिया गया"।

~कुछ महिलाओं को बलात्कार कर जिन्दा जला दिया गया और बाकियों को लोहे के गरम सलाखों से मार दिया गया।

~कश्मीरी पंडित नर्स जो श्रीनगर के सौर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में काम करती थी, का सामूहिक बलात्कार किया गया और मार मार कर उसकी हत्या कर दी गयी।

~बच्चों को उनकी माँओं के सामने स्टील के तार से गला घोंटकर मार दिया गया।

~कश्मीरी काफिर महिलाएँ पहाड़ों की गहरी घाटियों और भागने का रास्ता न मिलने पर ऊंचे मकानों की छतों से कूद कूद कर जान देने लगी।

~लेखक राहुल पंडिता उस समय 14 वर्ष के थे। बाहर माहौल ख़राब था। मस्जिदों से उनके ख़िलाफ़ नारे लग रहे थे। पीढ़ियों से उनके भाईचारे से रह रहे पड़ोसी ही कह रहे थे, 'मुसलमान बनकर आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो या वादी छोड़कर भागो'।

~राहुल पंडिता के परिवार ने तीन महीने इस उम्मीद में काटे कि शायद माहौल सुधर जाए। राहुल आगे कहते हैं, "कुछ लड़के जिनके साथ हम बचपन से क्रिकेट खेला करते थे वही हमारे घर के बाहर पंडितों के ख़ाली घरों को आपस में बांटने की बातें कर रहे थे और हमारी लड़कियों के बारे में गंदी बातें कह रहे थे। ये बातें मेरे ज़हन में अब भी ताज़ा हैं।

~1989 में कश्मीर में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी संगठन का नारा था- 'हम सब एक, तुम भागो या मरो'।

~घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। हालात और बदतर हो गए थे।

~कुल मिलाकर हजारों की संख्या में काफिर महिलाओं का बलात्कार किया गया।

~आज आप जिस तरह दाँत निकालकर धरती के जन्नत कश्मीर घूमकर मजे लेने जाते हैं और वहाँ के लोगों को रोजगार देने जाते हैं। उसी कश्मीर की हसीन वादियों में आज भी सैकड़ों कश्मीरी हिन्दू बेटियों की बेबस कराहें गूंजती हैं, जिन्हें केवल काफिर होने की सजा मिली।

~घर, बाजार, हाट, मैदान से लेकर उन खूबसूरत वादियों में न जाने कितनी जुल्मों की दास्तानें दफन हैं जो आज तक अनकही हैं। घाटी के खाली, जले मकान यह चीख-चीख के बताते हैं कि रातों-रात दुनिया जल जाने का मतलब कोई हमसे पूछे। झेलम का बहता हुआ पानी उन रातों की वहशियत के गवाह हैं जिसने कभी न खत्म होने वाले दाग इंसानियत के दिल पर दिए।

~लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी पंडित रविन्द्र कोत्रू के चेहरे पर अविश्वास की सैकड़ों लकीरें पीड़ा की शक्ल में उभरती हुईं बयान करती हैं कि यदि आतंक के उन दिनों में घाटी की मुस्लिम आबादी ने उनका साथ दिया होता जब उन्हें वहां से खदेड़ा जा रहा था, उनके साथ कत्लेआम हो रहा था तो किसी भी आतंकवादी में ये हिम्मत नहीं होती कि वह किसी कश्मीरी पंडित को चोट पहुंचाने की सोच पाता लेकिन तब उन्होंने हमारा साथ देने के बजाय कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेक दिए थे या उनके ही लश्कर में शामिल हो गए थे।

~अभी हाल में ही आपलोगों ने टीवी पर "अबू बकर अल बगदादी" के जेहादियों को काफिर "यजीदी महिलाओं" को रस्सियों से बाँधकर कौड़ियों के भाव बेचते देखा होगा।

~पाकिस्तान में खुलेआम हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर सार्वजनिक रूप से मौलवियों की टीम द्वारा धर्मपरिवर्तन कर निकाह कराते देखा होगा।

~बांग्लादेश से भारत भागकर आये हिन्दुओं के मुँह से महिलाओं के बलात्कार की हजारों मार्मिक घटनाएँ सुनी होंगी।

~यहाँ तक कि म्यांमार में भी एक काफिर बौद्ध महिला के बलात्कार और हत्या के बाद शुरू हुई हिंसा के भीषण दौर को देखा होगा।

~केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनियाँ में इस सोच ने मोरक्को से ले कर हिन्दुस्तान तक सभी देशों पर आक्रमण कर वहाँ के निवासियों को धर्मान्तरित किया, संपत्तियों को लूटा तथा इन देशों में पहले से फल फूल रही हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता का विनाश कर दिया।

~परन्तु पूरी दुनियाँ में इसकी सबसे ज्यादा सजा महिलाओं को ही भुगतनी पड़ी...
बलात्कार के रूप में ।

~आज सैकड़ों साल की गुलामी के बाद समय बीतने के साथ धीरे-धीरे ये बलात्कार करने की मानसिक बीमारी भारत के पुरुषों में भी फैलने लगी।

~जिस देश में कभी नारी जाति शासन करती थीं, सार्वजनिक रूप से शास्त्रार्थ करती थीं, स्वयंवर द्वारा स्वयं अपना वर चुनती थीं, जिन्हें भारत में देवियों के रूप में श्रद्धा से पूजा जाता था आज उसी देश में छोटी-छोटी बच्चियों तक का बलात्कार होने लगा और आज इस मानसिक रोग का ये भयानक रूप देखने को मिल रहा है ।

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

आइए जानते हैं... साईं आखिर था कौन..?

पिछले साठ सालों से शिरडी साईं ट्रस्ट एक मुस्लिम फ़क़ीर साईं बाबा उर्फ चांदमियाँ को ना केवल हिंदू ब्राह्मण साबित करने का कुत्सित प्रयास कर रहा है बल्कि अवतार प्रमाणित करने मे लगा हुआ है।
धर्म का मूल उद्देश्य ही सत्य की खोज हैं...
उस आस्था का क्या मूल्य जो झूठ और कपट के सहारे खड़ी हुई हो... सत्य तो यह है कि मौला साई के 99% भक्तों को उनकी असलियत के बारे में कुछ मालूम ही नहीं हैं... मौला साईं के जीवन के बारे में सबसे प्रामाणिक जानकारी उनके सेवक गोविंदराव दाभोलकर की पुस्तक "साई सतचरित्र" मे मिलती हैं... यह पुस्तक स्वयं मौला साईं के द्वारा ही लिखी मानी जाती हैं क्योंकि गोविंद राव ने जब बाबा से उनकी जीवनी लिखने की आज्ञा माँगी तो बाबा ने उन्हे आशीर्वाद देते हुए कहा कि "मैं तुम्हारे अंतकरण में प्रकट होकर स्वयं ही अपनी जीवनी लिखूंगा" गोविंद राव ने मस्जिद में होने वाली घटनाओं को संकलित कर सर्वप्रथम मराठी में पुस्तक लिखी... यही वह पुस्तक है जिसके बल पर चाँदमियाँ को महिमामंडित किया गया हैं, प्रस्तुत लेख मे साईं सतचरित्र पुस्तक के उन तथ्यों को लिखा गया है जो साबित करते हैं कि साई बाबा कट्टर मुस्लिम था। इस लेख का मूल उद्देश्य सत्य को प्रकट करना हैं...
1 :: साई बाबा सारा जीवन मस्जिद में रहें। ( पुस्तक में हर जगह इस बात का उल्लेख है)
नोट :: मौला साई लगभग पेंसठ वर्ष तक शिर्डी मे रहें पर एक भी रात उन्होोंने किसी हिंदू मंदिर मे नहीं गुज़ारी..!
2 :: "अल्लाह मालिक" सदा उनके ज़ुबान पर था, वो सदा अल्लाह मालिक पुकारते रहते... ( पूरी पुस्तक में जगह-जगह इस बात का उल्लेख है)
नोट :: मौला साई के मुख से कभी 'जय श्रीराम, हर हर महादेव या जय माता दी' नहीं निकलता था, ना ही कभी वो का उच्चारण करते थे..!
3 :: रोहीला मुसलमान आठों प्रहार अपनी कर्कश आवाज़ में क़ुरान शरीफ की कल्मे पढ़ता और अल्लाह ओ अकबर के नारे लगाता... परेशान होकर जब गाँव वालों ने बाबा से उसकी शिकायत की तो उन्होंने कहा कि "वे उसकी कलमो के समक्ष उपस्थित होने का साहस करने मे असमर्थ हैं" और बाबा ने गाँव वालों को भगा दिया।( अध्याय 3 पेज 5 )
नोट :: शिरडी साईं ट्रस्ट इन्हीं मौला साईं को अखिल ब्रह्मांड नायक कहता है, जो क़ुरान की कलमो से डर गया।
4 :: तरुण फ़क़ीर को उतरते देख, म्हलसापति ने उन्हें सर्वप्रथम "आओ साईं" कहकर पुकारा...(अध्याय 5 पेज 2 )
नोट :: मौला साईं मुस्लिम फ़क़ीर थे और फ़क़िरो को अरबी और उर्दू मे साईं नाम से पुकारा जाता हैं... साईं शब्द मूल रूप से हिन्दी नहीं हैं..!
5 :: मौला साईं हमेशा कफनी पहनते थे।(अध्याय 5 पेज 6 )
नोट :: कफनी एक प्रकार का पहनावा है, जो मुस्लिम फ़क़ीर पहनते हैं।
6 :: मौला साईं सुन्नत(ख़तना) कराने के पक्ष में थे। (अध्याय 7 पेज 1 )
नोट :: सुन्नत कराना मुस्लिम धर्म की परंपरा है।
7 :: फ़क़िरो के संग बाबा माँस और मछली का सेवन भी कर लेते थे।(अध्यया 7 पेज 3)
नोट :: कोई भी हिंदू संत ऐसा घृणित काम नहीं कर सकता..!
8 :: बाबा ने कहा "मैं मस्जिद में एक बकरा हलाल करने वाला हूँ, हाज़ी सिधिक से पूछो कि उसे क्या रुचिकर होगा... बकरे का माँस, नाध या अंडकोष"(अध्याय 11 पेज 5 )
नोट :: हिंदू संत कभी स्वप्न में भी बकरा हलाल नहीं कर सकता..! न ही ऐसे वीभत्स भोजन खा सकता हैं..!
9 :: एक बार मस्जिद में एक बकरा बलि चढ़ने लाया गया, तब साईं बाबा ने काका साहेब से कहा "मैं स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा"(अध्याय 23 पेज 6)
नोट :: हिंदू संत कभी ऐसा जघ्न्य कृत्य नहीं कर सकते..!
10:: मालेगाँव के फ़क़ीर पीर मोहम्मद का साईं बाबा बहुत आदर करते, वे सदैव उन्हे अपने दाहिने ओर बैठाते... सबसे पहले वो चिलम पीते फिर बाबा को देते... बाबा के पास जो भी दक्षिणा एकत्रित होती, उसमें से रोज पचास रुपये वो पीर मोहम्म्द को देते... जब वो लौटते तो बाबा भी सौ कदम तक उनके साथ जाते...(अध्याय 23 पेज 5 )
नोट :: मौला साईं इतना सम्मान कभी किसी हिंदू संत को नहीं देते थे..! रोज पचास रुपये वो उस समय देते थे, जब बीस रुपया तोला सोना मिलता था।

11 :: एक बार बाबा के भक्त मेघा ने उन्हे गंगा जल से स्नान कराने की सोचा तो बाबा ने कहा "मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो, मैं तो एक फ़क़ीर हूँ... मुझे गंगाजल से क्या प्रायोजन(अध्याय 28 पेज 7 )
नोट :: किसी हिंदू के लिए गंगा स्नान जीवन भर का सपना होता है, गंगा जल का दर्शन भी हिंदुओं मे अति पवित्र माना जाता है।
12 :: कभी बाबा मीठे चावल बनाते और कभी माँस मिश्रित चावल(पुलाव) बनाते थे। (अध्याय 38 पेज 2)
नोट :: माँस मिश्रित चावल अर्थात मटन बिरयानी सिर्फ़ मुस्लिम फ़क़ीर ही खा सकता हैं, कोई हिंदू संत उसे देखना भी पसंद नहीं करेगा।
13 :: एक एकादशी को बाबा ने दादा केलकर को कुछ रुपये देकर कुछ माँस खरीद कर लाने को कहा...(अध्याय 38 पेज 3 )

नोट :: एकादशी हिंदुओं का सबसे पवित्र उपवास का दिन होता है, कई घरों में इस दिन चावल तक नहीं पकता...

14 :: जब भोजन तैयार हो जाता तो बाबा मस्जिद से बर्तन मंगाकर, मौलवी से फातिहा पढ़ने को कहते थे।(अध्याय 38 पेज 3)
नोट :: फातिहा मुस्लिम धर्म का संस्कार है।
15 :: एक बार बाबा ने दादा केलकर को माँस मिश्रित पुलाव चख कर देखने को कहा... केलकर ने मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा हैं, तब बाबा ने केलकर की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मे डालकर बोले थोड़ा-सा इसमें से निकालो, अपना कट्टरपन छोड़कर चख कर देखो...(अध्याय 38 पेज 5 )
नोट :: मौला साईं ने परीक्षा लेने के नाम पर जीव हत्या कर, एक ब्राह्मण का धर्म भ्रष्ट कर दिया किंतु कभी अपने किसी मुस्लिम भक्त की ऐसी कठोर परीक्षा नहीं ली।


अन्य तथ्य जो सिद्ध करते हैं, साईं बाबा मुसलमान थे।
1 :: मौला साईं का सेवक अब्दुल बाबा जो लगभग तीस साल तक बाबा के साथ मस्जिद में ही रहा, रोज बाबा को क़ुरान सुनाता था। वो कभी रामायण या गीता नहीं सुनते थे।
2 :: महाराष्ट्र मे शिर्डी साईं मंदिर में गाई जाने वाली आरती का अंश "मंदा त्वांची उदरिले, मोमीन वंशी जन्मुनी लोँका तारिले” उपरोक्त आरती में "मोमिन वंशी जन्मुनी" अर्थात् मुसलमान वंश मे जन्मे शब्द स्पष्ट आया है।(15 साल से मोमीन वंशी गा रहे हैं फिर भी मौला को ब्राह्माण बता रहे हैं)
3 :: मौला साईं ने अपनी मृत्यु के कुछ दिन पहले औरंगाबाद के मुस्लिम फ़क़ीर शमशूद्दीन मियाँ को दो सौ पचास रुपये भिजवाया ताकि उनका मुस्लिम रीति रिवाज़ से अंतिम संस्कार कर दिया जाएं तथा सूचना भिजवाई कि वो अल्लाह के पास जाने वाले हैं।(ये एक तरह से मृत्यु पूर्व बयान जैसा है, जिसे कोर्ट भी सच मानती है। अगर बाबा हिंदू होते तो तेरहवीं करवाते, गंगाजली करवाते...)
4 :: मौला साईं जब तक जीवित रहे, शिरडी मे सूफ़ी फ़क़ीर के नाम से ही जाने जाते थे।
5 :: मौला साईं की मृत्यु के बाद उनकी मज़ार बनाई गई थी, जो 1954 तक थी। फिर उसे समाधी मे बदल दिया गया...


हम न मौला साईं विरोधी हैं, न सांप्रदायिक हैं लेकिन हमारा प्रयास है कि चांदमियां को जानबूझकर हिन्दु न साबित किया जाएं। पिछले पचास साल से पैसा कमाने के लिए जैसा अधर्म शिरडी ट्रस्ट ने किया, वैसा इतिहास में कभी नहीं हुआ..! 


शिर्डी साईं संस्थान के झूठ :-


जिस मौला साईं के जन्म तिथि का कोई अता-पता नहीं, उनकी कपट पूर्वक राम नवमी के दिन जयंती मनाई जा रही है।

 मौला साईं हमेशा "अल्लाह मलिक" पुकारते थे, जबकि "सबका मलिक एक" नानक जी कहते थे।

जो मौला साईं जीवन भर मस्जिद में रहें, उसे मंदिर में बैठा दिया गया... जो मौला साईं व्रत उपवास के विरोधी थे, उनके नाम से साईं व्रत कथा छप रही हैं। जो मौला साईं हमेशा अल्लाह मालिक बोलते थे, उनके साथ और राम को जोड़ दिया। जो मौला साईं रोज कुरान पड़ते थे, उनके मंत्र बनाये जा रहे हैं...पुराण लिखी जा रही है।

जो मौला साईं मांसाहारी थे, उन्हें हिन्दू अवतार बनाया जा रहा है। जिस मौला साईं ने गंगा जल छूने से इंकार कर दिया, उसके नाम से यज्ञ किये जा रहे हैं... गंगा जल से अभिषेक किया जा रहा है। जो खुद निगुरा था, उसे सदगुरु बनाया जा रहा है।
जो मौला साईं खुद अनपढ़ थे, उनके नाम से गीता छापी जा रही है। मरणधर्मा व्यक्ति के मंदिर बनाना हिंदू धर्म मे पाप है। इस देश मे हज़ारों संत हुए किंतु किसी की भी मंदिर नहीं हैं। व्यास जैसे ऋषि जिन्होंने 18 पुराण लिखे, गीता लिखी।अगस्त्य, विश्वामित्र, कपिल मुनि, नारद, दत्तात्रेय, भृिगु, पाराशर, सनक, सनन्दन सनतकुमार, शौनक, वशिष्ट, वामदेव, महर्षि वाल्मीकिल, तुलसीदास, गोरखनाथ, तुकाराम, नामदेव, मीरा, एकनाथ, मुक्ताबाई, नरहरी, नामदेव, सोपान, संत रविदास, चैतन्य महाप्रभु, राम कृष्ण परमहंस आदि-आदि... कितने ही संत हुए किंतु किसी के भी जगह जगह मंदिर नहीं हैं।