शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021
हवा के होते हैं सात प्रकार, जानिए उनका रहस्य...
रविवार, 24 अक्तूबर 2021
करवा चौथ पर नारी की महिमा
नारी अति महान जगत में नारी अति महान...
जिसका घर-घर में सम्मान...
धर्म-कर्म शृंगार है इसके, सत्य-अहिंसा इसके प्राण,
जिसका घर-घर में सम्मान...
नारी का सत्कार यहां पे, पहले आये इसी का नाम,
सब कहते है सीता-राम, सब कहते है राधे श्याम,
लक्ष्मी-नारायण कहते सब, देवों से पाया वरदान...
जिसका घर-घर में सम्मान...
हर युग में भारत की नारी, पति की रक्षा करती आई।
कष्ट सह जीवन भर पत्नी, पति की सेवा करती आई।
कई बार तो पति की खातिर दे दें अपनी जान...
जिसका घर-घर में सम्मान...
आओ आज सुनाये तुम्हको #करवा_चौथ के व्रत की महिमा,
करवा चौथ की कथा बताती 'भारत की नारी' की महिमा...
इसी कथा और व्रत के कारण बढ़ा है नारी का सम्मान...
जिसका घर-घर में सम्मान...
भारत की नारी सब से प्यारी, इसको माने दुनिया सारी,
तन-मन दोनों से ही सूंदर, पति की सेवा धर्म है जिसका,
घर को माने है ये मंदिर, सास-ससुर को माने भगवान...
डोली बैठ पति संग आये, सारा जीवन धर्म निभाए...
अंत काल यही इच्छा इसकी, पति के कंधो पर ही जाएं,
ऐसे अपना धर्म निभाएं, पति के कंधो पर ही जाएं...🙏🏻⛳
शनिवार, 16 अक्तूबर 2021
शस्त्र की महिमा
गुरुवार, 14 अक्तूबर 2021
लाला हरदयाल एक संन्यासी क्रांतिकारी🙏🏻🇮🇳⛳
बुधवार, 13 अक्तूबर 2021
दशहरा पर्व से जुड़ीं परंपराएं एवं कैसे करें शस्त्र पूजन, आप भी जानिए...
सोमवार, 11 अक्तूबर 2021
"नाना जी देशमुख" एक प्रेरणादायक जीवन
शनिवार, 9 अक्तूबर 2021
आइये जानते है “रत्ति भर” मुहावरे की वास्तविक सच्चाई क्या हैं..?
शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2021
कुलदेवी और देवताओं के बारे में चौंकाने वाली जानकारी...
बुधवार, 6 अक्तूबर 2021
अमावस्या
कर दिया आज पित्तरों को विदा...
पर कहां होते हैं, दिल से जुदा..!
हमारी चाल-ढाल, भाषा, हाव-भाव में...
संग चलते हैं, जीवन की राह में...
नहीं देख छू सकते हैं उनको...
पर कहां भूल सकते हैं उनको..!
जीवन उनकी यादों से है लदा...
कहां होते हैं दिल से जुदा..!
जीवन के मीठे फीके रंग में...
महसूस करते हैं उनको संग में...
आती है जब मुश्किल की घड़ी...
राह दिखाती है उनकी छड़ी...
तरसता है मन मिलने को सदा...
कहां होते हैं दिल से जुदा..!
लाल-पीली मोली में, तिलक की रोली में...
मन्त्र की बोली में, गोत्र की टोली में...
पूजा की थाली में, कलश-कुशा निराली में...
हंसी की ताली में, रात शगुनों वाली में...
ख्यालों में दिख जाते हैं यदाकदा...
कहां होते हैं दिल से जुदा..!
आ जाते हैं आंखों में, जब बजते हैं बाजे...
ढ़ूंढ़ते हैं उनको, देहरी-दरवाजे...
उनका ही अंश हैं, उनका ही वंश हैं।
जीवन का यही सारांश हैं।
यही तो हैं हमारे संस्कार...
कहां होते हैं दिल से जुदा..!
🙏🏻 जय श्री राम ⛳
सोमवार, 4 अक्तूबर 2021
'कुतुब मीनार' नहीं, "ध्रुव स्तंभ"
शनिवार, 2 अक्तूबर 2021
क्या #शास्त्री_जी की #हत्या का रहस्य छुपाने के लिए दो और हत्याएं की गईं थी..?
शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2021
70 प्रकार की बीमारियों को ठीक कर देता है #चूना
बुधवार, 15 सितंबर 2021
कान छिदवाने के फायदे...
हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से एक #कर्ण_वेध संस्कार का उल्लेख मिलता है। इसे उपनयन संस्कार से पहले किया जाता है। विशेष मुहूर्त में कान छिदवाने के बाद उसमें सोने का तार पहना जाता है। कान पके नहीं इसके लिए हल्दी को नारियल के तेल में मिलकर तब तक लगाएं तब तक की छेद अच्छे से फ्री ना हो जाए। दोनों ही कान छिदवाना चाहिए। आओ जानते हैं कान छिदवाने के फायदे...
1. कान छिदवाने से राहु और केतु के बुरे प्रभाव का असर खत्म होता है। जीवन में आने वाले आकस्मिक संकटों का कारण राहु और केतु ही होते हैं।
2. इसे मंदा केतु जब ठीक हो जाता है तो संतान पक्ष से भी व्यक्ति को कई कठिनाई नहीं होती है। धर्म के अनुसार इससे संतान स्वस्थ, निरोगी रोग और व्याधि मुक्त रहती है।
3. केतु और चंद्र की पटती नहीं है, यदि आपने कान में चांदी पहन रखी है तो यह नुकसान दायक होगी।
4. कानों में सोना पहनने से गुरु का साथ मिल जाता है, यह जंगल में भी मंगल कर देता है। यह भी कहा जाता है कि इससे बुरी शक्तियों का प्रभाव दूर होता है और व्यक्ति दीर्घायु होता है।
5. मंदा केतु पैर, कान, रीढ़, घुटने, लिंग, किडनी और जोड़ के रोग पैदा कर सकता है। इसे मन में मतिभ्रम और हमेशा किसी अनहोनी की आशंका बनी रहती है। इससे व्यक्ति के भीतर अपराधी प्रवृत्ति भी जन्म ले सकती है। ऐसे में कान छिदवाने से से यह सभी समस्या दूर हो जाती है।
6. कान छिदवाने से मेधा शक्ति बेहतर होती है तभी तो पुराने समय में गुरुकुल जाने से पहले कान छिदवाने की परंपरा थी।
7. मान्यता अनुसार कान छिदवाने से व्यक्ति के रूप में निखार आता है।
विज्ञान के अनुसार लाभ :
1- कहते हैं कि कान छिदवाने से सुनने की क्षमता बढ़ जाती है।
2- कान छिदवाने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
3- कान छिदने से तनाव भी कम होता है।
4- कान छिदने से लकवा जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।
5- पुरुषों के द्वारा कान छिदवाने से उनमें होने वाली हर्निया की बीमारी खत्म हो जाती है।
6- यह भी कहा जाता है कि पुरुषों के अंडकोष और वीर्य के संरक्षण में भी कर्णभेद का लाभ मिलता है।
7. इससे मस्तिष्क में रक्त का संचार समुचित प्रकार से होता है। इससे दिमाग तेज चलता है।
रविवार, 12 सितंबर 2021
राजनीतिक तौर पर सजग रहने का संस्कृतिक महत्व...
बुधवार, 8 सितंबर 2021
समोसे की दुकान
एक बड़ी कंपनी के गेट के सामने एक प्रसिद्ध समोसे की दुकान थी।
लंच टाइम मे अक्सर कंपनी के कर्मचारी वहां आकर समोसे खाया करते थे।
एक दिन कंपनी का एक मॅनेजर समोसे खाते-खाते समोसे वाले से मजाक के मूड में आ गए।
मॅनेजर साहब ने समोसेवाले से कहा, "यार गोपाल, तुम्हारी दुकान तुमने बहुत अच्छे से मेंटेन की हैं, लेकीन क्या तुम्हें नहीं लगता के तुम अपना समय और टॅलेंट समोसे बेचकर बर्बाद कर रहे हो..?
सोचो... अगर तुम मेरी तरह इस कंपनी में काम कर रहे होते तो आज कहा होते... हो सकता है, शायद तुम भी आज मेरी तरह मॅनेजर होते..!
इस बात पर समोसेवाले गोपाल ने बड़ा सोचा और बोला, "सर ये मेरा काम आपके काम से कही बेहतर है... 10 साल पहले जब मैं टोकरी में समोसे बेचता था, तभी आपकी जॉब लगी थी। तब मैं महीने में लगभग हजार रुपये कमाता था और आपकी पगार थी 10 हजार...
इन 10 सालों में हम दोनों ने खूब मेहनत की...
आप सुपरवाइजर से मॅनेजर बन गये...
और मैं टोकरी से इस प्रसिद्ध दुकान तक पहुंच गया...
आज आप महीना 40,000₹ कमाते हैं
और मैं महीना 20,000₹
लेकीन इस बात के लिए मैं मेरे काम को आपके काम से बेहतर नहीं कह रहा हूँ..!
ये तो मैं बच्चो के कारण कह रहा हूँ...
जरा सोचिए सर मैंने तो बहुत कम कमाई पर धंदा शुरू किया था, मगर मेरे बेटे को यह सब नहीं झेलना पडेगा... मेरी दुकान मेरे बेटे को मिलेगी। मैने जिंदगी मे जो मेहनत की हैं, उसका लाभ मेरे बच्चे उठाएंगे...
जबकी आपकी जिंदगी भर की मेहनत का लाभ, आपके मालिक के बच्चे उठाएंगे...
अब आपके बेटे को आप डिरेक्टली अपनी पोस्ट पर तो नहीं बिठा सकते ना..!
उसे भी आपकी ही तरह जीरो से शुरूआत करनी पड़ेगी... और अपने कार्यकाल के अंत मे वही पहुंच पाएंगा जहां अभी आप हो...
जबकी मेरा बेटा बिजनेस को यहां से और आगे ले जाएंगा..
और अपने कार्यकाल में हम सबसे बहुत आगे निकल जायेगा..
अब आप ही बताइये... किसका समय और टॅलेंट बर्बाद हो रहा है..?
मॅनेजर साहब ने समोसेवाले को 2 समोसे के 20 रुपये दिये और बिना कुछ बोले वहा से खिसक लिए...
सोमवार, 6 सितंबर 2021
#मरणोपरांत_परमवीरचक्र_विजेता_अब्दुल_हमीद_भी_फर्जी_निकला...
शनिवार, 4 सितंबर 2021
तो आज उर्दू हमारी राजभाषा होती...
हिंदी पखवाड़ा चल रहा है... ऐसे में एक शख्स को याद करना बेहद जरूरी है, जो नहीं होते तो आज उर्दू हमारी राजभाषा होती। वो थे - भारतेंदु हरिश्चंद्र ⛳
1192 में दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज तृतीय की पराजय के बाद से ही उत्तर में हिन्दी की स्थिति ज्यादा मजबूत नही रह गयी थी उसकी जगह फारसी ले चुकी थी। सिर्फ राजपूताना शेष था जो अब भी हिन्दी मे कार्य कर रहा था मगर धीरे धीरे वह मुगलो के हाथ मे आ गया और आधिकारिक स्तर पर हिन्दी अब बस एक समय की बात होकर रह गयी।
1757 में मुगलो की सत्ता उजड़ गयी और मराठो का प्रादुर्भाव हुआ, मराठो की राजभाषा संस्कृत तथा मराठी थी और फारसी को वे स्वीकारना नही चाहते थे। अंततः पुनः देवनागरी लिपि में हिंदुस्थानी लिखी जाने लगी, हिंदुस्थानी में हिंदी और उर्दू दोनों शब्दों का मेल था।
मगर देवनागरी का प्रयोग उस समय बहुत कठिन बात थी, इसलिए सिर्फ मराठा राजाओ और पेशवाओ को पत्र लिखते समय ही इसका प्रयोग होता था बाकी उर्दू और फारसी चलती रही। 1818 में मराठा साम्राज्य गिर गया और अंग्रेजो का शासन आया तो अंग्रेजी चरम पर पहुँच गयी।
हिन्दी पहले ही उर्दू से जूझ रही थी अब अंग्रेजी भी सिर पर खड़ी हो गयी। अंततः 9 सितंबर 1850 को वाराणसी के एक धनाढ्य अग्रवाल परिवार में भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म हुआ। 15 वर्ष के होने तक उन्होंने हिन्दी व्याकरण के सभी शब्दो को खोज लिया।
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिन्दी के प्रचार के लिये पानी की तरह पैसा बहाया, हिन्दू राजाओ से अपील भी की कि वे अपने राजकार्य हिन्दी मे करे। इस बीच उन्होंने दो नाटक लिखे "अंधेर नगरी" और "भारत की दुर्दशा", ये वे लेख थे जिन्होंने हिन्दी की क्रांति में मुख्य भूमिका निभाई।
एक बार काशी नरेश ने भारतेंदु से कहा, ‘बबुआ! घर को देखकर काम करो।’ इस पर उनका उत्तर था,‘हुजूर! इस धन ने मेरे पूर्वजों को खाया है, अब मैं इसे खाऊंगा।’
इन लेखों के माध्यम से उन्होंने हिन्दू धर्म मे लोगो की आस्था पुनः जगा दी और आखिरकार 1885 में उनकी मृत्यु हो गयी। वे जब स्वर्ग सिधारे उनके पास कोई विशेष संपत्ति नही रह गयी थी हिन्दी के उत्थान में उन्होंने अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया था। भारतेंदु उन्हें उपाधि मिली थी, जिसका अर्थ था भारत का चंद्रमा।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के बाद तो मानो हिन्दी कवियों का मेला लग गया, मैथिलीशरण गुप्त और माखनलाल चतुर्वेदी ने हिन्दी को पूरे भारत मे पहचान दिला दी। 1911 में बॉलीवुड की प्रथम फ़िल्म हरिश्चंद्र आयी, दादा साहेब फाल्के ने इसकी डबिंग पूर्ण हिन्दी में करके सूर्यवंश कालीन भारत जगा दिया। आज का बॉलीवुड जो भी हो तब के बॉलीवुड ने हिन्दी प्रचार में चार चाँद लगा दिए थे।
अंततः 1947 तक वीर सावरकर, महात्मा गांधी, गुरु गोलवलकर, पंडित नेहरू और सुभाषचंद्र बोस जैसे दिग्गज नेता अपने अपने कार्यक्षेत्र में हिन्दी ला चुके थे। ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त होते ही सारे राजकार्य हिन्दी मे आरंभ हो गए, हालांकि अब फिर से इसके साथ छेड़छाड़ जारी है उर्दू शब्दो को फिर से इसमें मिलाकर एक प्रयास जारी है कि हिन्दी को कभी प्राचीन भाषा का दर्जा ना मिले।
जिस बॉलीवुड ने हिन्दी को खड़ा करने में मुख्य भूमिका निभाई उस पर अंडरवर्ल्ड का साया पड़ने लगा, अब तो ये बात फैलाई जाने लगी कि भारत के पास अपनी कोई भाषा नही थी मुगलो ने आकर पढ़ना लिखना सीखाया। बहरहाल चुनौतियां हर युग मे है, हमारा युग भारतेंदु हरिश्चंद्र जितना बुरा भी नही है। जब जब हिन्दी पर संकट मंडराएगा भारतेंदु अवश्य जन्म लेंगे।
आप बस ये ध्यान रखे कि कोई नागरिक ये ना कहे कि उर्दू भारत की मूल भाषा है या फिर हिन्दी पुरानी है तो उसमे उर्दू शब्द क्यो है? हिन्दी मे जबरदस्ती परिवर्तन किये गए है इसलिए उसका स्वरूप बिगड़ा, पृथ्वीराज के काल तक शुद्ध हिन्दी ही हमारी राष्ट्रभाषा थी।
लेखक - परख सक्सेना
गुरुवार, 19 अगस्त 2021
अच्छी संगत का फल
बुधवार, 11 अगस्त 2021
मृत्यु के 14 प्रकार
शनिवार, 7 अगस्त 2021
प्रश्न :- गुरु बनाना क्यों जरूरी है, भक्ति तो घर पर भी कर सकते हैं..?
क्या जीवन में एक ही गुरु बनाना चाहिए..?
एक ही क्यों..? यदि ऐसी बन्दिश आप अपने पर लगाते हो तो आप तो पशुओं से भी अधम रह जाओगे। एक प्रेरक प्रसंग आपके समक्ष रख रहा हूँ।
एक बार एक महात्माजी अपने कुछ शिष्यों के सँग खेतों में से कहीं जा रहे थे। तभी उनकी नजर ऊपर आसमान में उड़ते कव्वों के एक झुण्ड पर पड़ी। उनमें से एक कौए की चोंच में एक चिड़िया थी तथा बाकी सब कौए उस कौए को चोंच मार रहे थे।अचानक उस कौए की चोंच से चिड़िया छूट गयी । अन्य कव्वों में से एक आगे बढ़ा और उस चिड़िया को लपक लिया।अब बाकी कव्वों ने उस कव्वे को चोंच मारनी शुरू कर दी ।इस बीच पहला कव्वा आहत होकर नीचे गिर पड़ा। महात्माजी उस कव्वे के पास गए और हाथ जोड़कर नमन करते हुए बोले," है कागराज! आज से आप मेरे गुरु हैं" और अपने शिष्यों से उसका उपचार करने का आदेश दिया। शिष्य आश्चर्यचकित थे कि इतने ज्ञानी गुरुजी ने एक निर्ज्ञानी कव्वे को गुरु बना लिया। कव्वे के उपचार करते हुए उन्होंने अपनी जिज्ञासा प्रकट की तो गुरुजी बोले," शिष्यों! आज इस कौए ने मुझे सिखाया है कि यदि किसी एक वस्तु के लिए एक से अधिक लोग झगड़ रहे हों तो उस वस्तु को छोड़ देना ही अच्छा है। अन्यथा आप जीवन खो दोगे और जिस उद्देश्य के लिए जीवन पाया है उसे पूर्ण न कर सकोगे। अतः जो भी हमें ज्ञान दे वह हमारा गुरु है और उसका हमें सम्मान करना चाहिए।"
इसलिए एक ही गुरु बनाकर सन्तुष्ट मत होईये। ज्ञान प्राप्ति की कोई सीमा नहीं है और मनुष्य शरीर में कोई पूर्णज्ञानी नहीं है। इसलिए जितने आपके गुरु होंगे उतने ही आप अधिक ज्ञानवान होंगे।