शुक्रवार, 25 मई 2018

संस्कृत का महत्व जानना चाहते हैं तो पढ़ें उससे जुड़े कुछ मुख्य तथ्य...

संस्कृत के बारे में ये 20 तथ्य जान कर आपको भारतीय होने पर गर्व होगा। आज हम आपको संस्कृत के बारे में कुछ ऐसे तथ्य बता रहे हैं, जो किसी भी भारतीय का सर गर्व से ऊंचा कर देंगे...

1. संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी माना जाता है।

2. संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा है।

3. अरब लोगो की दखलंदाजी से पहले संस्कृत भारत की राष्ट्रीय भाषा थी।

4. NASA के मुताबिक, संस्कृत धरती पर बोली जाने वाली सबसे स्पष्ट भाषा है।

5. संस्कृत में दुनिया की किसी भी भाषा से ज्यादा शब्द है। वर्तमान में संस्कृत के शब्दकोष में 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द है।

6. संस्कृत किसी भी विषय के लिए एक अद्भुत खजाना है। जैसे हाथी के लिए ही संस्कृत में 100 से ज्यादा शब्द है।

7. NASA के पास संस्कृत में ताड़पत्रो पर लिखी 60,000 पांडुलिपियां है जिन पर नासा रिसर्च कर रहा है।

8. फ़ोबर्स मैगज़ीन ने जुलाई,1987 में संस्कृत को Computer Software के लिए सबसे बेहतर भाषा माना था।

9. किसी और भाषा के मुकाबले संस्कृत में सबसे कम शब्दों में वाक्य पूरा हो जाता है।

10. संस्कृत ही अकेली ऐसी भाषा है जिसे बोलने में जीभ की सभी मांसपेशियो का इस्तेमाल होता है।

11. अमेरिकन हिंदु युनिवर्सिटी के अनुसार संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से मुक्त हो जायेगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सदा सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश (Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।

12. संस्कृत स्पीच थेरेपी में भी मददगार है यह एकाग्रता को बढ़ाती है।

13. कर्नाटक के मुत्तुर गांव के लोग केवल संस्कृत में ही बात करते है।

14. सुधर्मा संस्कृत का पहला अखबार था, जो 1970 में शुरू हुआ था। आज भी इसका ऑनलाइन संस्करण उपलब्ध है।

15. जर्मनी में बड़ी संख्या में संस्कृतभाषियो की मांग है। जर्मनी की 14 यूनिवर्सिटीज़ में संस्कृत पढ़ाई जाती है।

16. नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब वो अंतरिक्ष ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलट हो जाते थे। इस वजह से मैसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंले कई भाषाओं का प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मैसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उल्टे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। जैसे

अहम् विद्यालयं गच्छामि।

विद्यालयं गच्छामि अहम्।

गच्छामिअहम् विद्यालयं ।

उक्त तीनों के अर्थ में कोई अंतर नहीं है।

17. आपको जानकर हैरानी होगी कि Computer द्वारा गणित के सवालो को हल करने वाली विधि यानि Algorithms संस्कृत में बने है, ना कि अंग्रेजी में...

18. नासा के वैज्ञानिको द्वारा बनाएं जा रहे 6th और 7th जेनरेशन Super Computers संस्कृतभाषा पर आधारित होंगे जो 2034 तक बनकर तैयार हो जाएंगे।

19. संस्कृत सीखने से दिमाग तेज हो जाता है और याद करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए London और Ireland के कई स्कूलों में संस्कृत को Compulsory Subject बना दिया है।

20. इस समय दुनिया के 17 से ज्यादा देशों की कम से कम एक University में तकनीकी शिक्षा के कोर्सेस में संस्कृत पढ़ाई जाती है।

संस्कृत, संस्कृति एवं संस्कार को वर्तमान में बचाने की सबसे अधिक आवश्यकता है।⛳

सोमवार, 21 मई 2018

क्या आप जानते हैं कि सूखे की वजह सेकुलरता है...

आपको लगेगा अजीब बकवास है किन्तु यही अटल सत्य है...

सेकुलरता के चक्कर में पिछले 68 सालो में हिंदुत्व के प्रतीकों को खत्म किया गया।
जिसमें पीपल, बड़गद और नीम के पेडों को सरकारी स्तर पर लगाना बन्द किया गया।

पीपल कार्बन डाई ऑक्साइड का 100% आब्जरबर है, बडगद़ 80% और नीम 75 %

अब चूँकि हिन्दू धर्म मान्यता अनुसार हिन्दू समाज इन पेड़ों पर जल चढ़ाते हैं इसलिए सरकार ने तथाकथित कुछ सेकुलरवादी लोगो को खुश करने के चक्कर में इन पेड़ों से दूरी बना ली तथा इसके बदले यूकेलिप्टस को लगाना शुरू कर दिया जो जमीन को जल विहीन कर देता है।

इस पेड़ को लगाना इंदिरा गांधी ने चालू किया। आज हर जगह यूकेलिप्टस, गुलमोहर और अन्य सजावटी पेड़ो ने ले ली।

अब जब वायुमण्डल में रिफ्रेशर ही नहीं रहेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही और जब गर्मी बढ़ेगी तो जल भाप बनकर उड़ेगा ही...

हर 500 मीटर की दूरी पर एक पीपल का पेड़ लगाये तो आने वाले कुछ साल भर बाद प्रदूषण मुक्त भारत होगा।

वैसे आपको एक और जानकारी दे दी जाएं...
पीपल के पत्ते का फलक अधिक और डंठल पतला होता है, जिसकी वजह शांत मौसम में भी पत्ते हिलते रहते हैं और स्वच्छ ऑक्सीजन देते रहते हैं।

जब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे, तब मंत्रियों और सांसदों के आवास के अंदर से सभी नीम और पीपल के पेड़ कटवा दिए थे।

कम्युनिस्ट कितने मानसिक रूप से पिछड़े हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तब लोक सभाध्यक्ष पीपल और नीम के पेड़ कटवाने का कारण बताये थे कि इन पेड़ों पर भूत निवास करते हैं।

मिडिया में बड़ा मुद्दा नहीं बना, क्यूँकि यह पेड़ हिन्दू धार्मिक आस्था के प्रतीक थे।
वैसे भी पीपल को वृक्षों का राजा कहते है। इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए-
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु, सखा शंकरमेवच।
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम, वृक्षराज नमस्तुते।

भावार्थ तो समझ ही गए होंगे..!

        अब करने योग्य कार्य

इन जीवनदायी पेड़ो को ज्यादा से ज्यादा लगाये तथा यूकेलिप्टस पर बैन लगाया जाएं।
जिसके पास इतनी जग़ह न हो, वह तुलसी जी का पौधा लगायेे।

आइये हम सब मिलकर अपने "हिंदुस्तान" को प्राकृतिक आपदाओं से बचाये।

अब आप समझ गए होगें की सूखे की वजह "सेक्युलरिज़्म" यानी सेकुलरता है।

महर्षि पाणिनि हैं कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के जनक...

500 ई पू एक पूरा ग्रन्थ लिखा था,पढ़ें पूरा लेख...

महर्षि पाणिनि के बारे में बताने पूर्व में आज की कंप्यूटर प्रोग्रामिंग किस प्रकार कार्य करती है इसके बारे में कुछ बताना चाहूँगा
आज की कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषाएँ जैसे C, C++, Java आदि में प्रोग्रामिंग हाई लेवल लैंग्वेज (high level language) में लिखे जाते है जो अंग्रेजी के सामान ही होती है | इसे कंप्यूटर की गणना सम्बन्धी व्याख्या (theory of computation) जिसमे प्रोग्रामिंग के syntex आदि का वर्णन होता है, के द्वारा लो लेवल लैंग्वेज (low level language) जो विशेष प्रकार का कोड होता है जिसे mnemonic कहा जाता है जैसे जोड़ के लिए ADD, गुना के लिए MUL आदि में परिवर्तित किये जाते है | तथा इस प्रकार प्राप्त कोड को प्रोसेसर द्वारा द्विआधारी भाषा (binary language: 0101) में परिवर्तित कर क्रियान्वित किया जाता है |
इस प्रकार पूरा कंप्यूटर जगत Theory of Computation पर निर्भर करता है |
इसी Computation पर महर्षि पाणिनि (लगभग 500 ई पू) ने एक पूरा ग्रन्थ लिखा था
महर्षि पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े व्याकरण विज्ञानी थे | इनका जन्म उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। कई इतिहासकार इन्हें महर्षि पिंगल का बड़ा भाई मानते है | इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है।
इनके द्वारा भाषा के सन्दर्भ में किये गये महत्त्व पूर्ण कार्य 19वी सदी में प्रकाश में आने लगे |
19वी सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी Franz Bopp (14 सितम्बर 1791 – 23 अक्टूबर 1867) ने श्री पाणिनि के कार्यो पर गौर फ़रमाया । उन्हें पाणिनि के लिखे हुए ग्रंथों में तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व करने के नए मार्ग मिले |
इसके बाद कई संस्कृत के विदेशी चहेतों ने उनके कार्यो में रूचि दिखाई और गहन अध्ययन किया जैसे: Ferdinand de Saussure (1857-1913), Leonard Bloomfield (1887 – 1949) तथा एक हाल ही के भाषा विज्ञानी Frits Staal (1930 – 2012).
तथा इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए 19वि सदी के एक जर्मन विज्ञानी Friedrich Ludwig Gottlob Frege (8 नवम्बर 1848 – 26 जुलाई 1925 ) ने इस क्षेत्र में कई कार्य किये और इन्हें आधुनिक जगत का प्रथम लॉजिक विज्ञानी कहा जाने लगा |
जबकि इनके जन्म से लगभग 2400 वर्ष पूर्व ही श्री पाणिनि इन सब पर एक पूरा ग्रन्थ लिख चुके थे
अपनी ग्रामर की रचना के दोरान पाणिनि ने Auxiliary Symbols (सहायक प्रतीक) प्रयोग में लिए जिसकी सहायता से कई प्रत्ययों का निर्माण किया और फलस्वरूप ये ग्रामर को और सुद्रढ़ बनाने में सहायक हुए |
इसी तकनीक का प्रयोग आधुनिक विज्ञानी Emil Post (फरवरी 11, 1897 – अप्रैल 21, 1954) ने किया और आज की समस्त computer programming languages की नीव रखी |
Iowa State University, अमेरिका ने पाणिनि के नाम पर एक प्रोग्रामिंग भाषा का निर्माण भी किया है जिसका नाम ही पाणिनि प्रोग्रामिंग लैंग्वेज रखा है: यहाँ देखे –

एक शताब्दी से भी पहले प्रिसद्ध जर्मन भारतिवद मैक्स मूलर (१८२३-१९००) ने अपने साइंस आफ थाट में कहा –
“मैं निर्भीकतापूर्वक कह सकता हूँ कि अंग्रेज़ी या लैटिन या ग्रीक में ऐसी संकल्पनाएँ नगण्य हैं जिन्हें संस्कृत धातुओं से व्युत्पन्न शब्दों से अभिव्यक्त न किया जा सके । इसके विपरीत मेरा विश्वास है कि 2,50,000 शब्द सम्मिलित माने जाने वाले अंग्रेज़ी शब्दकोश की सम्पूर्ण सम्पदा के स्पष्टीकरण हेतु वांछित धातुओं की संख्या, उचित सीमाओं में न्यूनीकृत पाणिनीय धातुओं से भी कम है ।
अंग्रेज़ी में ऐसा कोई वाक्य नहीं जिसके प्रत्येक शब्द का 800 धातुओं से एवं प्रत्येक विचार का पाणिनि द्वारा प्रदत्त सामग्री के सावधानीपूर्वक वेश्लेषण के बाद अविशष्ट 121 मौलिक संकल्पनाओं से सम्बन्ध निकाला न जा सके ।”
The M L B D News letter ( A monthly of indological bibliography) in April 1993, में महर्षि पाणिनि को first softwear man without hardwear घोषित किया है। जिसका मुख्य शीर्षक था ” Sanskrit software for future hardware “
जिसमे बताया गया ” प्राकृतिक भाषाओं (प्राकृतिक भाषा केवल संस्कृत ही है बाकि सब की सब मानव रचित है ) को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाने के तीन दशक की कोशिश करने के बाद, वैज्ञानिकों को एहसास हुआ कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में भी हम 2600 साल पहले ही पराजित हो चुके है। हालाँकि उस समय इस तथ्य किस प्रकार और कहाँ उपयोग करते थे यह तो नहीं कह सकते, पर आज भी दुनिया भर में कंप्यूटर वैज्ञानिक मानते है कि आधुनिक समय में संस्कृत व्याकरण सभी कंप्यूटर की समस्याओं को हल करने में सक्षम है।
व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संगृहीत हैं।
NASA के वैज्ञानिक Mr.Rick Briggs.ने अमेरिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (artificial intelligence) और पाणिनी व्याकरण के बीच की शृंखला खोज की। प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाना बहुत मुस्किल कार्य था जब तक कि Mr.Rick Briggs. द्वारा संस्कृत के उपयोग की खोज न गयी।
उसके बाद एक प्रोजेक्ट पर कई देशों के साथ करोड़ों डॉलर खर्च किये गये।
महर्षि पाणिनि शिव जी बड़े भक्त थे और उनकी कृपा से उन्हें महेश्वर सूत्र से ज्ञात हुआ जब शिव जी संध्या तांडव के समय उनके डमरू से निकली हुई ध्वनि से उन्होंने संस्कृत में वर्तिका नियम की रचना की थी। तथा इन्होने महादेव की कई स्तुतियों की भी रचना की |
नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्त्तुकामो सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्॥ -माहेश्वर सूत्र
पाणिनीय व्याकरण की महत्ता पर विद्वानों के विचार:
“पाणिनीय व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है” (लेनिन ग्राड के प्रोफेसर टी. शेरवात्सकी)।
“पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय-प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं” (कोल ब्रुक)।
“संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है… यह मानवीय मष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है” (सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. हण्डर)।
“पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा”। (प्रो. मोनियर विलियम्स)
ये है भारतीय हिन्दू सनातन संस्कृति की महानता एवं वैज्ञानिकता !

राजीव भाई के अथक ज्ञान से...

यह पोस्ट उन क्षत्रीयों के लिए हैं, जो शराब और माँस खाना अपनी शान समझते हैं... पूरी ज़रूर पढ़े...

मुगल बादशाह का दिल्ली में दरबार लगा था। हिंदुस्तान के दूर-दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे। उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति कि "है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में ? "सभा में सन्नाटा सा पसर गया, एक बार फिर वही दोहराया गया ! तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहा "है कोई हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ??सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की और गया ! वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौर थे ! रिड़मल जी ने कहा, "मुग़लों में बहादुरी नहीं कुटिलता है... सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनियाँ में ! मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया !कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर से तो कभी राठोरो को दूसरे राजपूतो से...।बादशाह का मुँह देखने लायक था, ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो। "बाते मत करो राव... उदाहरण दो वीरता का।" रिड़मल जी ने कहा "क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ?? "बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नहीं, रिड़मल बोले " इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की... "बादशाह हंसा और दरबार में बेठे कवियों की और देखकर बोला "इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है। मैं भी 100 मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ? मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा। "राव रिड़मल राठौर निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए। रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीरदार का ख्याल आया।रात को 11 बजे रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीरदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी। ठाकुर साहब मेहमान की आवभगत के लिए बाहर पोल पर आये, घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद्ध ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले" जोधपुर महाराज... आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ। हुकम आप अंदर पधारो... मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता। राव ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी अब आप ही बताये की जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?
                           रोहणी जागीदार बोले, "बस इतनी सी बात... मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और राजपूती की लाज जरूर रखेंगे "राव रिड़मल राठौर को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर.. , मान गए क्षत्रिय धर्म को।सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ खुसी-खुसी तैयार थे! उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ," महाराज थोडा रुकिए !! मैं एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में।" राव  ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय है कैसे मानेगा ! अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को, एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए। ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा "आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को, दोनों में से कौन सा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है ? आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा !ठकुरानी जी ने कहा "बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था। लड़ दोनों ही सकते है, आप निश्चित् होकर भेज दो"
                         दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस दृश्य को देखने जमा थे। बड़े लड़के को मैदान में लाया गया और मुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो... तभी बीकानेर महाराजा बोले "ये क्या तमाशा है ? राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ? बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो... 20 घुड़सवारों का दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन 20 घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी। दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ, मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी, इसी तरह बादशाह के 200 सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई। ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा "200 मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर... तलवार से ये नही मरेगा... कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी। सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करी और मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा। बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहत्थे बैठा रखा था ये सोच कर की ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगा लेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली। उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए।बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था। सेकड़ो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था। बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको..। एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब छिड़क दो। राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब का उपयोग करो। दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए। मौलवी ने बादशाह को कहा "हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनकी कुल देवी है और ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है।

गर्व है क्षत्रिय वीरो पर...
 

               जय भवानी । जय राजपूताना ।।🚩

शुक्रवार, 18 मई 2018

प्रश्न - विनाश काले विपरीत पूजा क्या है?

उत्तर - हिन्दुओं द्वारा परमात्मा को भूलकर
पीर, फकीर, साई की पूजा की जा रही है, पिशाच संस्कृति के राक्षसों को हिंदू मंदिरों व
घरों में स्थापित किया जा रहा है, पूजा जा रहा है, फिर भी पूछते हो कि विनाश काले विपरीत पूजा क्या है? कब्र या मजार मरे हुए आदमी की
होते है... हिंदू समाज में अगर कोई व्यक्ति मरने वाले के पीछे चार कदम भी रखता है तो उसे घर आ कर स्नान करना पडता हैं... फिर हम मजार पर चढ़ावा प्रसाद बच्चों को क्यों खिलाते है क्या वह अपवित्र नहीं है !
सभी कब्र उन मुसलमानों की हैं जो हमारे पूर्वजो
से लड़ते हुए मारे गए थे, इस हालत में उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या हमारे उन वीर पूर्वजो का अपमान नहीं हैं जिन्होंने अपने धर्म की रक्षा करते हुए खुशी-खुशी अपने प्राणों को बलि वेदी पर समर्पित कर दिया था ?
बहराइच उत्तर प्रदेश में गाजी मियाँ की मजार है
जिसको पूजने के लिए देश के कोने कोने से
हिंदू आते हैं...
इतिहास का थोडा सा भी जानकार व्यक्ति
जानता है कि महमूद गजनवी के उत्तर भारत को
बुरी तरह से लूटने बर्बाद करने के बाद सन्
1030 में उसके भांजे सालार गाजी ने भारत को दारूल इस्लाम बनाने के उद्देश्य से भारत पर आक्रमण किया...
सिन्ध, पंजाब, हरियाणा को रौंदता हुआ उत्तर प्रदेश के बहराइच तक जा पहुँचा... रास्ते में लाखों हिंदुओं का कत्लेआम किया, लाखो हिंदुओं को इस्लाम में धर्मांतरित किया और लाखों हिंदू ओरतों से बलात्कार हुए, हजारों
मंदिरों- गुरुकुलों का विध्वंस कर दिया गया तथा इस्लाम के जिहाद की आंधी तेज चलने लगी...
ऐसे संकट के समय में बहराइच के राजा सुहेल
देव पासी ने गाजी मियाँ की सेना का सामना किया जिसमें सालार गाजी मारा गया... सलार
गाजी के सेनापति ने वही उसकी कब्र बनवा दी... आज हिंदू उसे अपने कुल देवता मानकर पूजते हैं, अगर गाजी जिंदा रहता तो वह हिंदुओं का ओर कत्लेआम करता...
कुछ ऐसा ही चरित्र अजमेर ख्वाजा मोइनुद्दीन
चिश्ती का है, ख्वाजा मोहम्मद गौरी के
साथ भारत आया था, ख्वाजा ने छल कपट से
हिंदुओं को मुसलमान बनाया तथा हिंदुओं के मंदिरों को नष्ट कर आया था... ऐसे ही कार्य दिल्ली में पीर निजामुद्दीन ओलिया ने किया था, जिसने जितना ज्यादा हिंदुओं का कत्लेआम किया, हिंदुओं को इस्लाम में धर्मांतरित किया
वो उतना बड़ा पीर...
क्या हिन्दुओं के ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम, कृष्ण, दुर्गा अथवा तैंतीस कोटि देवी- देवता
शक्तिहीन हो चुकें हैं, क्या उनमें एक भी ऐसा देवता नहीं जिसे हमारे मूर्ख हिन्दू अपना देवता मान सकें... हिन्दुओं के लिए शव(कब्र) पूजा
का अर्थ है प्रेत योनि की दुर्गति... किसी भी शव की पूजा चाहे वह मजार का हो या शिर्डी साई का... उसे पूजने वाले की कभी सदगति नहीं हो सकती... हिंदू समाज को इन मजार, कब्रों, पीरों की पूजा बंद करनी चाहिए... उस परमपिता परमेश्वर की पूजा करनी चाहिए जो
सभी के दिलों में बसता हैं...

'यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपिमाम्"

गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मूर्दा (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत-प्रेत ही बनते हैं...

इस लिए मजारों पर कब्रों पर जाकर माथा रगड़ने से पहले यह सोच लें...🚩🙏🏻🚩

🚩🚩जय श्री राम🚩🚩

जब संसद में एक बनिए ने बताया बनिए का अर्थ...

प्राचीनकाल मैं वस्तु-विनिमय प्रणाली प्रचलित थी. इस प्रणाली को पण कहा जाता था. यह काम करने वाले पणी कहलाते थे. वेदों में भी इस शब्द का उल्लेख है. वस्तु विनिमय का सारा काम वैश्य करते थे. इसी कारण वैश्यों को पणी कहा जाता था . यही पणी  शब्द बिगड़ते-बिगड़ते बनिया हो गया.

समय के साथ-साथ इस शब्द का प्रयोग डरपोक व्यक्ति के रूप में होने लगा. तब अग्रवाल समाज के महत्वपूर्ण लोगो ने इस दिशा मैं आवाज भी उठाई. इसी सन्दर्भ में एक रोचक प्रसंग हैं...

यह मार्च 1966 की बात है. लोकसभा का सत्र चल रहा था. लोकसभा में वैश्य समाज से सम्बन्ध रखने वाले सांसद कमलनयन बजाज सदन की कार्यवाही में भाग ले रहे थे. उन्हें किसी ने गलत मंशा से बनिया कह कर पुकारा. बजाज जी ने निर्भीक हाजिरजवाबी से जो उत्तर भरी लोकसभा में दिया उसे सुनकर सब निरुतर हो गए. उन्होंने कहा... मुझे बनिया होने पर गर्व हैं...
बनिया वह है जो सबको अपना बना सकता है.
बनिया वह है जो सबका बन सकता है.
बनिया वह है जिसकी सबके साथ बन सकती है.
बनिया वह है जो सब कुछ बन सकता है.
बनिया वह है जो सब कुछ बना सकता है.

हमारे शास्त्रों में बनिए को महाजन कहा गया है अर्थात जो जनो में महान है वो बनिया है.
आप इस शब्द को अपमान के साथ प्रयोग नहीं कर सकते.

इस प्रकार एक बनिए ने सारी लोकसभा को अपनी हाजिरजवाबी से निरुत्तर करते हुए अपनी जाति की सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत की...

🙏जय श्री अग्रसेन जी महाराज🚩

रविवार, 13 मई 2018

अगर आज का हिन्दू भी ये 5 कार्य करे, तो दुनिया हमारे कदमो में होगी...

आखिर वह क्या कारण थे कि शिवाजी महाराज के समय में हर जगह भगवा रंग🚩 नजर आ रहा था और हर-हर महादेव का राग चारों दिशाओं से सुना जा सकता था? जब आप शिवाजी जी के पूरे जीवनकाल को पढ़ते हैं तो आपको वहां शिवाजी महाराज के ऐसे कई निर्णय नजर आयेंगे जिनके कारण यह सब संभव हुआ था, तो आज हम आपके लिए उन्हीं निर्णयों में से 5 प्रमुख निर्णय लायें हैं और आज भी यह बातें हर व्यक्ति को एक सफल व्यक्ति बना सकती हैं-

1. पुस्तकों में हुए थे बड़े बदलाव शिवाजी महाराज महसूस कर रहे थे कि 16 सदी में मुस्लिम शासकों ने भारतीय इतिहास के साथ काफी खिलवाड़ किया है और पुस्तकों में भी अरबी शब्द और उर्दूं शब्दों से हमारे युवाओं को बहकाया जा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक बाबर और मुग़ल ने तब तक हिन्दुस्थान की कई किताबों में 60 फीसदी हिन्दुस्तानी शब्दों को ही खत्म कर दिया था, इसके कारण युवा उर्दू की तरफ बढ़ रहे थे और उन्हीं का इतिहास पढ़ना शुरू कर रहे थे. मुस्लिम शासकों की इसी चाल को समझते हुए शिवाजी महाराज ने भारतीय इतिहास वापस किताबों से जोड़ा और यह उनकी बड़ी सफलता थी. कुछ ऐसा ही वर्तमान में हो रहा है, जहाँ हमारा अपना इतिहास पुस्तकों से गायब है.

2. हिन्दू एकजुटता शिवाजी महाराज ने 15 साल की उम्र में अपनी पहली लड़ाई लड़ी थी और जीती भी थी. इस सफलता के पीछे जो मुख्य कारण हिन्दुओं की एकजुटता थी. शिवाजी महाराज ने अपने स्तर पर हर हिन्दू राजा को खुद से जोड़ने के प्रयास किये. इसका फल यह हुआ कि जो हिन्दू अभी तक अलग-अलग भटक रहे थे वह एक हो गये और एक साथ लड़ने लगे. तो उन्होंने हिन्दुओं को एकता का बल दिखाया था.

3. धर्म रहेगा तो हम रहेंगे शिवाजी महाराज इस बात को मानते थे कि अगर धर्म रहेगा तो हम रहेंगे और धर्म खत्म हो गया तो हिन्दू खुद ही खत्म हो जायेंगे. जैसा कि तब मुस्लिम शासक कर रहे थे. वह लोग सीधे धर्म पर चोट कर रहे थे. उन्हों ने सिर्फ और सिर्फ धर्म की रक्षा की और धर्म ने ही हिन्दुओं की रक्षा की थी. अतः आज हमें धर्म की रक्षा की कसम खानी चाहिए.

4. बलिदान से कभी नहीं डरे शिवाजी शिवाजी महाराज जानते थे कि इतिहास जीतने वालों को हमेशा याद रखता है और जीत बलिदान भी मांगती है. शिवाजी ने कभी यह नहीं देखा कि दुश्मन कौन हैं और कितने हैं. शिवाजी महाराज अगर निर्णय करते थे कि अब मातृभूमि की रक्षा इस दुश्मन से करनी है तो उस निर्णय से फिर हटते नहीं थे. यही इनका निर्णय इनको सभी योद्धाओं में इतना प्रमुख बना देता था.

5. कभी दुश्मन पर विश्वास नहीं करने का निर्णय शुरुआत में कई बार शिवाजी महाराज ने दुश्मनों पर विश्वास किया था लेकिन एक समय बाद शिवाजी महाराज ने तय कर लिया था कि अब दुश्मन पर विश्वास नहीं करना है. औरंगजेब ने शिवाजी को धोखे दिए थे लेकिन बाद में जब शिवाजी महाराज का असली रूप इसने देखा था तो वह झुकने पर मजबूर हो गया था, इसलिए हमें भी आज दुश्मन पर अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए.

शिवाजी महाराज के जीवन से हमें इस तरह के कई सफलता मंत्र प्राप्त हो सकते हैं लेकिन असल बात यह है कि हम शिवाजी महाराज के जीवन यात्रा को पढ़ ही नहीं रहे हैं. शिवाजी जी से हमें गीता ज्ञान जैसी कई महत्वपूर्ण बातें मिल सकती हैं और इन बातों को अगर हिन्दू घोल के पी जाएँ तो फिर कोई भी इस धर्म पर चोट नहीं कर सकता है.