शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

सावन माह में शिवलिंग पर दूध क्यों..?

भगवान शिव को दूध चढ़ाना एक पुण्य का काम माना जाता है. शिवलिंग का जलाभिषेक करने के साथ ही दूध से अभिषेक करने की परम्परा का देश भर में पूरी आस्था से पालन किया जाता है. सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाना तो जैसे अनिवार्य ही समझा जाता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है? असल में इसके दो कारण हैं, आइये इनके बारे में विस्तार से जानते हैं-

पौराणिक कथा

समुद्र मंथन की पूरी कथा विष्णुपुराण और भागवतपुराण में वर्णित है. जिसमें एक कथा मिलती है. इस कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब विष की उत्पत्ति हुई थी तो पूरा संसार इसके तीव्र प्रभाव में आ गया था. जिस कारण सभी लोग भगवान शिव की शरण में आ गए क्योंकि विष की तीव्रता को सहने की ताकत केवल भगवान शिव के पास थी. शिव ने बिना किसी भय के संसार के कल्याण हेतु विष पान कर लिया. विष की तीव्रता इतनी अधिक थी कि भगवान शिव का कंठ नीला हो गया.
विष का घातक प्रभाव शिव और शिव की जटा में विराजमान देवी गंगा पर पड़ने लगा. ऐसे में शिव को शांत करने के जल की शीलता भी काफी नहीं थी. सभी देवताओं ने उनसे दूध ग्रहण करने का निवेदन किया. लेकिन अपने जीव मात्र की चिंता के स्वभाव के कारण भगवान शिव ने दूध से उनके द्वारा ग्रहण करने की आज्ञा मांगी. स्वभाव से शीतल और निर्मल दूध ने शिव के इस विनम्र निवेदन को तत्काल ही स्वीकार कर लिया. शिव ने दूध को ग्रहण किया जिससे उनकी तीव्रता काफी सीमा तक कम हो गई पंरतु उनका कंठ हमेशा के लिए नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना जाने लगा.

शिव के शरीर में जाकर विष के अनिष्टकारी प्रभाव को कम करने के कारण दूध भगवान् शिव को अत्यंत प्रिय है, यही कारण है कि शिवलिंग पर दूध जरूर चढ़ाया जाता है.

वैज्ञानिक कारण

भारत की ज्यादातर परम्पराओं और प्रथाओं के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण जरूर मौज़ूद है, जिसकी वजह से ये परम्पराएं और प्रथाएं सदियों से चली आ रहीं हैं. शिवलिंग पर दूध चढ़ाना भी ऐसे ही एक वैज्ञानिक कारण से जुड़ा हुआ है खासतौर पर सावन (श्रावण) के महीने में मौसम बदलने के कारण बहुत सी बीमारियां होने की संभावना रहती है, क्योंकि इस मौसम में वात-पित्त और कफ़ के सबसे ज्यादा असंतुलित होने की संभावना रहती है, ऐसे में दूध का सेवन करने से आप मौसमी और संक्रामक बीमारियों की चपेट में जल्दी आ सकते हैं. इसलिए सावन में दूध का कम से कम सेवन वात-पित्त और कफ की समस्या से बचने का सबसे आसान उपाय है इसलिए पुराने समय में लोग सावन के महीने में दूध शिवलिंग पर चढ़ा देते थे, साथ ही सावन के मौसम में बारिश के कारण जगह-जगह कई तरह की घास-फूस भी उग आती है, जिसका सेवन मवेशी कर लेते हैं, लेकिन यह उनके दूध को ज़हरीला भी बना सकता है. ऐसे में इस मौसम में दूध के इस अवगुण को भी हरने के लिए एक बार फिर भोलेनाथ, शिवलिंग के रूप में समाधान बनकर सामने आते हैं और दूध को शिवलिंग पर अर्पित करके आम लोग मौसम की कई बीमारियों के साथ-साथ दूध के कई अवगुणों से ग्रसित होने से बच पाते हैं.

इन्हीं कारणों से सदियों से शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता आ रहा है. सतयुग में धरती पर जीवमात्र की रक्षा के लिए भगवान् शिव ने विषपान किया था, शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा के रूप में, दूध के विष बन जाने की सभी संभावनाओं पर विराम लगाते हुए आज भी भगवान् शिव मनुष्यों की सहायता कर रहे हैं.

इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाना केवल आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी उचित है.

सोमवार, 23 जुलाई 2018

चन्द्रशेखर आजाद जी का जीवन एवं मृत्यु ...

महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर 'आजाद' (२३ जुलाई १९०६ - २७ फ़रवरी १९३१) ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे राम प्रसाद बिस्मिल व भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे।

 उपनाम : 'आजाद', पण्डित जी', बलराज' व 'Quick Silver'

जन्मस्थल : भाबरा गाँव (चन्द्र्शेखर आज़ादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला)
मृत्युस्थल: चन्द्रशेखर आजाद पार्क, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
आन्दोलन: भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम
प्रमुख संगठन: हिदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन के प्रमुख सेनापति (१९२८)
सन् १९२२ में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन  को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले ९ अगस्त १९२५ को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् १९२७ में 'बिस्मिल' के साथ ४ प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स का हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।

जन्म तथा प्रारम्भिक जीवन

अपने पैतृक गाँव में चन्द्रशेखर आजाद की मूर्ति
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गाँव (अब चन्द्रशेखर आजादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला) में २३ जुलाई सन् १९०६ को हुआ था।[3][4] उनके पूर्वज बदरका (वर्तमान उन्नाव जिला) से थे। आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी संवत् १९५६ में अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों मध्य प्रदेश  अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भाबरा गाँव में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस  क्रान्तिकारियों का गढ़ था। वह मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। क्रान्तिकारियों का वह दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के नाम से जाना जाता था।

चंद्रशेखर का नाम आजाद कैसे पड़ा ? जब 15 साल के आजाद को जज के सामने पेश किया गया तो उन्होंने ने कहा कि मेेेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा पता जेल है। इससे जज भड़क गया और आजाद को 15 बेंतो की सजा सुनाई गई। यही से उनका नाम पड़ा 'आजाद'।

पहली घटना

१९१९ में हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया। चन्द्रशेखर उस समय पढाई कर रहे थे। जब गांधीजी  ने सन् १९२१ में असहयोग आन्दोलनका फरमान जारी किया तो वह आग ज्वालामुखी बनकर फट पड़ी और तमाम अन्य छात्रों की भाँति चन्द्रशेखर भी सडकों पर उतर आये। अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे पहली बार गिरफ़्तार हुए और उन्हें १५ बेतों की सज़ा मिली। इस घटना का उल्लेख पं० जवाहरलाल नेहरू  ने कायदा तोड़ने वाले एक छोटे से लड़के की कहानी के रूप में किया है-

ऐसे ही कायदे (कानून) तोड़ने के लिये एक छोटे से लड़के को, जिसकी उम्र १५ या १६ साल की थी और जो अपने को आज़ाद कहता था, बेंत की सजा दी गयी। वह नंगा किया गया और बेंत की टिकटी से बाँध दिया गया। जैसे-जैसे बेंत उस पर पड़ते थे और उसकी चमड़ी उधेड़ डालते थे, वह 'भारत माता की जय!' चिल्लाता था। हर बेंत के साथ वह लड़का तब तक यही नारा लगाता रहा, जब तक वह बेहोश न हो गया। बाद में वही लड़का उत्तर भारत के क्रान्तिकारी कार्यों के दल का एक बड़ा नेता बना।

झांसी में क्रांतिकारी गतिविधियां

चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया। झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे। अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर आजाद दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी करते थे। वह धिमारपुर गांव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे। झांसी में रहते हुए चंद्रशेखर आजाद ने गाड़ी चलानी भी सीख ली थी।

क्रान्तिकारी संगठन

असहयोग आन्दोलन के दौरान जब फरवरी १९२२ में चौरी चौरा की घटना के पश्चात् बिना किसे से पूछे गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आज़ाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया और पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेशचन्द्र चटर्जी ने १९२४ में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ (एच० आर० ए०) का गठन किया। चन्द्रशेखर आज़ाद भी इस दल में शामिल हो गये। इस संगठन ने जब गाँव के अमीर घरों में डकैतियाँ डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाने की व्यवस्था हो सके तो यह तय किया गया कि किसी भी औरत के ऊपर हाथ नहीं उठाया जाएगा। एक गाँव में राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने आज़ाद का पिस्तौल छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बावजूद आज़ाद ने अपने उसूलों के कारण उस पर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रान्तिकारी दल के आठ सदस्यों पर, जिसमें आज़ाद और बिस्मिल भी शामिल थे, पूरे गाँव ने हमला कर दिया। बिस्मिल ने मकान के अन्दर घुसकर उस औरत के कसकर चाँटा मारा, पिस्तौल वापस छीनी और आजाद को डाँटते हुए खींचकर बाहर लाये। इसके बाद दल ने केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटने का फैसला किया। १ जनवरी १९२५ को दल ने समूचे हिन्दुस्तान में अपना बहुचर्चित पर्चा द रिवोल्यूशनरी (क्रान्तिकारी) बाँटा जिसमें दल की नीतियों का खुलासा किया गया था। इस पैम्फलेट में सशस्त्र क्रान्ति की चर्चा की गयी थी। इश्तहार के लेखक के रूप में "विजयसिंह" का छद्म नाम दिया गया था। शचींद्रनाथ सान्याल इस पर्चे को बंगाल में पोस्ट करने जा रहे थे तभी पुलिस ने उन्हें बाँकुरा में गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। "एच० आर० ए०" के गठन के अवसर से ही इन तीनों प्रमुख नेताओं - बिस्मिल, सान्याल और चटर्जी में इस संगठन के उद्देश्यों को लेकर मतभेद था।

इस संघ की नीतियों के अनुसार ९ अगस्त १९२५ को काकोरी काण्ड को अंजाम दिया गया। जब शाहजहाँपुर में इस योजना के बारे में चर्चा करने के लिये मीटिंग बुलायी गयी तो दल के एक मात्र सदस्य अशफाक उल्ला खाँ ने इसका विरोध किया था। उनका तर्क था कि इससे प्रशासन उनके दल को जड़ से उखाड़ने पर तुल जायेगा और ऐसा ही हुआ भी। अंग्रेज़ चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओँ - पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल', अशफाक उल्ला खाँ एवं ठाकुररोशन सिंह  को १९ दिसम्बर १९२७ तथा उससे २ दिन पूर्व राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को १७ दिसम्बर १९२७ को फाँसी पर लटकाकर मार दिया गया। सभी प्रमुख कार्यकर्ताओं के पकडे जाने से इस मुकदमे के दौरान दल पाय: निष्क्रिय ही रहा। एकाध बार बिस्मिल तथा योगेश चटर्जी आदि क्रान्तिकारियों को छुड़ाने की योजना भी बनी जिसमें आज़ाद के अलावा भगत सिंह  भी शामिल थे लेकिन किसी कारण वश यह योजना पूरी न हो सकी।

४ क्रान्तिकारियों को फाँसी और १६ को कड़ी कैद की सजा के बाद चन्द्रशेखर आज़ाद ने उत्तर भारत के सभी कान्तिकारियों को एकत्र कर ८ सितम्बर १९२८ को दिल्ली के फीरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त सभा का आयोजन किया। इसी सभा में भगत सिंह को दल का प्रचार-प्रमुख बनाया गया। इसी सभा में यह भी तय किया गया कि सभी क्रान्तिकारी दलों को अपने-अपने उद्देश्य इस नयी पार्टी में विलय कर लेने चाहिये। पर्याप्त विचार-विमर्श के पश्चात् एकमत से समाजवाद को दल के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल घोषित करते हुए "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन" का नाम बदलकर "हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन" रखा गया। चन्द्रशेखर आज़ाद ने सेना-प्रमुख (कमाण्डर-इन-चीफ) का दायित्व सम्हाला। इस दल के गठन के पश्चात् एक नया लक्ष्य निर्धारित किया गया - "हमारी लड़ाई आखिरी फैसला होने तक जारी रहेगी और वह फैसला है जीत या मौत।"

लाला लाजपतराय का बदला

17 दिसम्बर, 1928 को चन्द्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह और राजगुरु ने संध्या के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ़्तर को जा घेरा। ज्यों ही जे. पी. सांडर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकला, पहली गोली राजगुरु ने दाग़ दी, जो साडंर्स के मस्तक पर लगी और वह मोटर साइकिल से नीचे गिर पड़ा। भगतसिंह ने आगे बढ़कर चार–छह गोलियाँ और दागकर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब सांडर्स के अंगरक्षक ने पीछा किया तो चन्द्रशेखर आज़ाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया। लाहौर नगर में जगह–जगह परचे चिपका दिए गए कि लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया। समस्त भारत में क्रान्तिकारियों के इस क़दम को सराहा गया।

केन्द्रीय असेंबली में बम
चन्द्रशेखर आज़ाद के ही सफल नेतृत्व में भगतसिंहऔर बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली की केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट किया। यह विस्फोट किसी को भी नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं किया गया था। विस्फोट अंग्रेज़ सरकार द्वारा बनाए गए काले क़ानूनों के विरोध में किया गया था। इस काण्ड के फलस्वरूप भी क्रान्तिकारी बहुत जनप्रिय हो गए। केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट करने के पश्चात् भगतिसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने स्वयं को गिरफ्तार करा लिया। वे न्यायालय को अपना प्रचार–मंच बनाना चाहते थे।

चरम सक्रियता

आज़ाद के प्रशंसकों में पण्डित मोतीलाल नेहरू, पुरुषोत्तमदास टंडन का नाम शुमार था। जवाहरलाल नेहरू से आज़ाद की भेंट आनन्द भवन  में हुई थी उसका ज़िक्र नेहरू ने अपनी आत्मकथा में 'फासीवादी मनोवृत्ति' के रूप में किया है। इसकी कठोर आलोचना मन्मथनाथ गुप्त ने अपने लेखन में की है। कुछ लोगों का ऐसा भी कहना है कि नेहरू ने आज़ाद को दल के सदस्यों को समाजवाद के प्रशिक्षण हेतु रूस भेजने के लिये एक हजार रुपये दिये थे जिनमें से ४४८ रूपये आज़ाद की शहादत के वक़्त उनके वस्त्रों में मिले थे। सम्भवतः सुरेन्द्रनाथ पाण्डेय तथा यशपाल का रूस जाना तय हुआ था पर १९२८-३१ के बीच शहादत का ऐसा सिलसिला चला कि दल लगभग बिखर सा गया। जबकि यह बात सच नहीं है। चन्द्रशेखर आज़ाद की इच्छा के विरुद्ध जब भगत सिंह एसेम्बली में बम फेंकने गये तो आज़ाद पर दल की पूरी जिम्मेवारी आ गयी। साण्डर्स वध में भी उन्होंने भगत सिंह का साथ दिया और बाद में उन्हें छुड़ाने की पूरी कोशिश भी की। आज़ाद की सलाह के खिलाफ जाकर यशपाल ने २३ दिसम्बर १९२९ को दिल्ली के नज़दीक वायसराय की गाड़ी पर बम फेंका तो इससे आज़ाद क्षुब्ध थे क्योंकि इसमें वायसराय तो बच गया था पर कुछ और कर्मचारी मारे गए थे। आज़ाद को २८ मई १९३० को भगवती चरण वोहरा की बम-परीक्षण में हुई शहादत से भी गहरा आघात लगा था। इसके कारण भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की योजना भी खटाई में पड़ गयी थी। भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु की फाँसी रुकवाने के लिए आज़ाद ने दुर्गा भाभी को गांधीजी के पास भेजा जहाँ से उन्हें कोरा जवाब दे दिया गया था। आज़ाद ने अपने बलबूते पर झाँसी और कानपुर में अपने अड्डे बना लिये थे। झाँसी में मास्टर रुद्र नारायण, सदाशिव मलकापुरकर, भगवानदास माहौर तथा विश्वनाथ वैशम्पायन थे जबकि कानपुर में पण्डित शालिग्राम शुक्ल सक्रिय थे। शालिग्राम शुक्ल को १ दिसम्बर १९३० को पुलिस ने आज़ाद से एक पार्क में मिलने जाते वक्त शहीद कर दिया था।

बलिदान

एच०एस०आर०ए० द्वारा किये गये साण्डर्स-वध और दिल्ली एसेम्बली बम काण्ड में फाँसी की सजा पाये तीन अभियुक्तों- भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव ने अपील करने से साफ मना कर ही दिया था। अन्य सजायाफ्ता अभियुक्तों में से सिर्फ ३ ने ही प्रिवी कौन्सिल में अपील की। ११ फ़रवरी १९३१ को लन्दन की प्रिवी कौन्सिल में अपील की सुनवाई हुई। इन अभियुक्तों की ओर से एडवोकेट प्रिन्ट ने बहस की अनुमति माँगी थी किन्तु उन्हें अनुमति नहीं मिली और बहस सुने बिना ही अपील खारिज कर दी गयी। चन्द्रशेखर आज़ाद ने मृत्यु दण्ड पाये तीनों प्रमुख क्रान्तिकारियों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया। वे उत्तर प्रदेश की हरदोई जेल में जाकर गणेशशंकर विद्यार्थी से मिले। विद्यार्थी से परामर्श कर वे इलाहाबाद गये और जवाहरलाल नेहरू से उनके निवास आनन्द भवन में भेंट की। आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र- कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें। नेहरू जी ने जब आजाद की बात नहीं मानी तो आजाद ने उनसे काफी देर तक बहस भी की। इस पर नेहरू जी ने क्रोधित होकर आजाद को तत्काल वहाँ से चले जाने को कहा तो वे अपने तकियाकलाम 'स्साला' के साथ भुनभुनाते हुए ड्राइँग रूम से बाहर आये और अपनी साइकिल पर बैठकर अल्फ्रेड पार्क की ओर चले गये। अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे तभी सी०आई०डी० का एस०एस०पी० नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी आ गयी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी में आजाद को वीरगति प्राप्त हुई। यह दुखद घटना २७ फ़रवरी १९३१ के दिन घटित हुई और हमेशा के लिये इतिहास में दर्ज हो गयी।

पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था। जैसे ही आजाद की बलिदान की खबर जनता को लगी सारा इलाहाबाद अलफ्रेड पार्क में उमड पडा। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे। वृक्ष के तने के इर्द-गिर्द झण्डियाँ बाँध दी गयीं। लोग उस स्थान की माटी को कपडों में शीशियों में भरकर ले जाने लगे। समूचे शहर में आजाद की बलिदान की खबर से जब‍रदस्त तनाव हो गया। शाम होते-होते सरकारी प्रतिष्ठानों प‍र हमले होने लगे। लोग सडकों पर आ गये।

आज़ाद के बलिदान की खबर जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू को मिली तो उन्होंने तमाम काँग्रेसी नेताओं व अन्य देशभक्तों को इसकी सूचना दी।। बाद में शाम के वक्त लोगों का हुजूम पुरुषोत्तम दास टंडन के नेतृत्व में इलाहाबाद के रसूलाबाद शमशान घाट पर कमला नेहरू को साथ लेकर पहुँचा। अगले दिन आजाद की अस्थियाँ चुनकर युवकों का एक जुलूस निकाला गया। इस जुलूस में इतनी ज्यादा भीड थी कि इलाहाबाद की मुख्य सडकों पर जाम लग गया। ऐसा लग रहा था जैसे इलाहाबाद की जनता के रूप में सारा हिन्दुस्तान  अपने इस सपूत को अंतिम विदाई देने उमड पड़ा हो। जुलूस के बाद सभा हुई। सभा को शचीन्द्रनाथ सान्याल की पत्नी प्रतिभा सान्याल ने सम्बोधित करते हुए कहा कि जैसे बंगाल में खुदीराम बोस की बलिदान के बाद उनकी राख को लोगों ने घर में रखकर सम्मानित किया वैसे ही आज़ाद को भी सम्मान मिलेगा। सभा को कमला नेहरू तथा पुरुषोत्तम दास टंडन ने भी सम्बोधित किया। इससे कुछ ही दिन पूर्व ६ फ़रवरी १९३१ को पण्डित मोतीलाल नेहरू के देहान्त के बाद आज़ाद भेस बदलकर उनकी शवयात्रा में शामिल हुए थे।

व्यक्तिगत जीवन

आजाद प्रखर देशभक्त थे। काकोरी काण्ड में फरार होने के बाद से ही उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख लिया था और इसका उपयोग उन्होंने कई बार किया। एक बार वे दल के लिये धन जुटाने हेतु गाज़ीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद मठ की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाये। परन्तु वहाँ जाकर जब उन्हें पता चला कि साधु उनके पहुँचने के पश्चात् मरणासन्न नहीं रहा अपितु और अधिक हट्टा-कट्टा होने लगा तो वे वापस आ गये। प्राय: सभी क्रान्तिकारी उन दिनों रूस की क्रान्तिकारी कहानियों से अत्यधिक प्रभावित थे आजाद भी थे लेकिन वे खुद पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने में ज्यादा आनन्दित होते थे। एक बार दल के गठन के लिये बम्बई गये तो वहाँ उन्होंने कई फिल्में भी देखीं। उस समय मूक फिल्मों का ही प्रचलन था अत: वे फिल्मो के प्रति विशेष आकर्षित नहीं हुए।

चन्द्रशेखर आज़ाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारम्भ किया गया आन्दोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्‍वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के सोलह वर्षों बाद १५ अगस्त सन् १९४७ को हिन्दुस्तान की आजादी का उनका सपना पूरा तो हुआ किन्तु वे उसे जीते जी देख न सके। सभी उन्हें पण्डितजी ही कहकर सम्बोधित किया करते थे।

मृत्यु

चंद्रशेखर आजाद की मौत की कहानी भी उतनी ही रहस्यमयी है जितनी की नेताजी सुभाष चंद्र बोस की।


आजाद की मौत से जुडी एक गोपनीय फाइल आज भी लखनऊ के सीआइडी ऑफिस में रखी है।


इस फाइल में उनकी मौत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें दर्ज हैं। फाइल का सच सामने लाने के लिए कई बार प्रयास भी हुए पर हर बार इसे सार्वजनिक करने से मना कर दिया गया। इतना ही नहीं भारत सरकार ने एक बार इसे नष्ट करने के आदेश भी तत्कालीन मुख्यमंत्री को दिए थे।

लेकिन, उन्होंने इस फाइल को नष्ट नहीं कराया। आजाद की मौत से जुड़ी इस फाइल में इलाहाबाद के तत्कालीन अंग्रेज पुलिस अफसर नॉट वावर के बयान दर्ज है। उसमें कहा गया है कि नॉट वावर की ही टुकड़ी ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क मे बैठे आजाद को घेर लिया था और एक भीषण गोलीबारी के बाद आजाद ने खुद को गोली मार ली थी। नॉट वावर ने अपने बयान मे कहा है कि वह उस समय खाना खा रहे थे, तभी उन्हें जवाहरलाल नेहरू का मैसेज आया। नॉट वावर को बताया गया कि आप जिसकी तलाश कर रहे हैं वह इस समय अल्फ्रेड पार्क मे है और वह वहां तीन बजे तक रहेगा। फिर नॉट वावर ने बिना देरी किए पुलिस बल लेकर अल्फ्रेड पार्क को चारों ओर से घेर लिया और आजाद को आत्मसमर्पण करने को कहा। आजाद ने अपना माउजर निकालकर एक इंस्पेक्टर को गोली मार दी।

इसके बाद नॉट वावर ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया। उन्होंने अपने बयान में बताया है कि पांच गोली से आजाद ने हमारे पांच लोगो को मारा फिर छठी गोली अपने कनपटी पर मार ली। आजाद आजीवन ब्रह्मचारी रहे। आजाद का जन्मस्थान भाबरा अब ‘आजादनगर’ के रूप में जाना जाता है।

जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी’ से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) एवं साण्डर्स गोलीकांड (1928) में सक्रिय भूमिका निभाई। अलफ्रेड पार्क, इलाहाबाद में 1931 में उन्होंने रूस की बोल्शेविक क्रांति की तर्ज पर समाजवादी क्रांति का आह्वान किया। आजाद ने भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों के साथ देश की आजादी के लिए संगठित हो प्रयास शुरू किए।

काकोरी कांड के बाद जब आजाद 27 फरवरी को प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में बैठे थे तभी उन्हें घेर लिया गया। एक घंटे तक दोनों तरफ से गोलियां चलती रही। एक ओर पूरी फौज और दूसरी तरफ अकेले आजाद। जब गोलियां खत्म होने लगीं तो आखिरी गोली अपनी कनपटी पर मारकर आजाद ने अपना नाम आजाद सार्थक करते हुए शहीद हो गए।


भगत सिंह को छुड़ाने के लिए खजाना देने गए थे नेहरू को


विद्यार्थी जी के कहने पर भगत सिंह की आजादी के लिए चंद्रशेखर आजाद खुद एचएसआरए का खजाना लेकर नेहरू के पास गए थे। नेहरू ने न केवल खजाना हड़प लिया, बल्कि आजाद के साथ धोखा भी किया। जंग-ए-आजादी के लिए क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी खजाना लूटा और इलाहाबाद में आनंद भवन में मोती लाल नेहरू को सौंपा था।


गुप्तचर अधिकारी ने किए थे खुलासे


नेहरू के जमाने के एक गुप्तचर अधिकारी थे धर्मेंद्र गौड़। उन्होंने रिटायर होने के बाद कई खुलासे किए थे। वह अपनी किताब में लिखते हैं कि जिस दिन आजाद की मृत्यु हुई, उस दिन आजाद नेहरू से मिलने आनंद भवन गए थे। यहां नेहरू और उनमें तकरार हुई। इसके बाद वह सीधे कंपनी बाग चले गए। वहां 80 पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया। यहां पर आजाद ने अपनी ही एक गोली से खुद की जान ले ली थी।


नेहरू ने कहा था, अंग्रेज नाराज हो जाएंगे


नेहरू के बारे में लाल बहादुर शास्त्री ने भी लिखा है कि जब काकोरी कांड के कुछ लोग बरी होकर इलाहाबाद पहुंचे थे तो उनके स्वागत करने वालों को नेहरू ने रोका था। नेहरू ने उन लोगों से कहा था कि अगर आप उनके स्वागत में जाओगे तो अंग्रेज नाराज हो जाएंगे।


 

रविवार, 22 जुलाई 2018

बाल गंगाधर तिलक

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक (२३ जुलाई १८५६ - १ अगस्त १९२०),
जन्म से केशव गंगाधर तिलक, एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुएँ; ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें "भारतीय अशान्ति के पिता" कहते थे। उन्हें, "लोकमान्य" का आदरणीय शीर्षक भी प्राप्त हुआ, जिसका अर्थ हैं लोगों द्वारा स्वीकृत (उनके नायक के रूप में)। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है।

उपनाम : बाल, लोकमान्य
जन्मस्थल : रत्नागिरी जिला, महाराष्ट्र
मृत्युस्थल: बम्बई, महाराष्ट्र
आन्दोलन: भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम

तिलक ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे, तथा भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे। उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा "स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच" (स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ।

प्रारम्भिक जीवन

तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को ब्रिटिश भारत  में वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गाँव चिखली में हुआ था। ये आधुनिक कालेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी में थे। इन्होंने कुछ समय तक स्कूल और कालेजों में गणित पढ़ाया। अंग्रेजी शिक्षा के ये घोर आलोचक थे और मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। इन्होंने दक्खन शिक्षा सोसायटी की स्थापना की ताकि भारत में शिक्षा का स्तर सुधरे।

राजनीतिक यात्रा

लाल-बाल-पाल की त्रिमूर्ति का एक दुर्लभ चित्र जिसमें बायें से लाला लाजपतराय, बीच में तिलक जी और सबसे दायें बिपिनचन्द्र पाल बैठे हैं
तिलक ने इंग्लिश मेमराठा दर्पण व मराठी में केसरी  नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किये जो जनता में बहुत लोकप्रिय हुए। तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। इन्होंने माँग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।

तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल  शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा। 1908 में तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गये और 1916 में एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से 1890 में जुड़े। हालांकि, उसकी मध्य अभिवृत्ति, खासकर जो स्वराज्य हेतु लड़ाई के प्रति थी, वे उसके ख़िलाफ़ थे। वे अपने समय के सबसे प्रख्यात आमूल परिवर्तनवादियों में से एक थे।

जल्दी शादी करने के व्यक्तिगत रूप से विरोधी होने के बावजूद, तिलक 1891 एज ऑफ़ कंसेन्ट विधेयक  के खिलाफ थे, क्योंकि वे उसे हिन्दू धर्म में दख़लअन्दाज़ी और एक ख़तरनाक नज़ीर के रूप में देख रहे थे। इस अधिनियम ने लड़की के विवाह करने की न्यूनतम आयु को 10 से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दिया था।

आल इण्डिया होम रूल लीग

लाला लाजपत राय ने एनी बेसेंट की मदद से होम रुल लीग की स्थापना की यह कोई सत्याग्रह आंदोलन जैसा नहीं था इसमें चार या पांच लोगों की टुकड़ियां बनाई जाती थी जो पूरे भारत में बड़े बड़े राजनेताओं और वकीलों से मिलकर होम रूल लीग का मतलब समझाया करते थे एनी बेसेंट जो कि आयरलैंड से भारत आई हुई थी उन्होंने वहां पर होमरूल लीग जैसा प्रयोग देखा था उसी तरह का प्रयोग उन्होंने भारत में करने का सोचा

सामाजिक योगदान और विरासत

तिलक ने मराठी में मराठा दर्पण व केसरी नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किये जो जनता में बहुत लोकप्रिय हुए। तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। इन्होंने माँग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।

तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। १९०७ में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा। १९०८ में तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गये और १९१६ में एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की।

मृत्यु

सन १९१९ ई. में कांग्रेस की अमृतसर बैठक में हिस्सा लेने के लिये स्वदेश लौटने के समय तक तिलक इतने नरम हो गये थे कि उन्होंने मॉन्टेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के ज़रिये स्थापित लेजिस्लेटिव कौंसिल (विधायी परिषद) के चुनाव के बहिष्कार की गान्धी की नीति का विरोध ही नहीं किया। इसके बजाय तिलक ने क्षेत्रीय सरकारों में कुछ हद तक भारतीयों की भागीदारी की शुरुआत करने वाले सुधारों को लागू करने के लिये प्रतिनिधियों को यह सलाह अवश्य दी कि वे उनके प्रत्युत्तरपूर्ण सहयोग की नीति का पालन करें। लेकिन नये सुधारों को निर्णायक दिशा देने से पहले ही १ अगस्त,१९२० ई. को बम्बई में उनकी मृत्यु हो गयी। मरणोपरान्त श्रद्धांजलि देते हुए गान्धी जी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा और जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय क्रान्ति का जनक बतलाया। "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा" का नारे देने वालेे स्वातंत्रता के महानायक गंगाधर तिलक का 1 अगस्त,1920 ई. को मुम्बई में देहान्त हुआ था।

पुस्तकें

तिलक जी ने यूँ तो अनेक पुस्तकें लिखीं किन्तु श्रीमद्भगवद्गीता की व्याख्या को लेकर मांडले जेल में लिखी गयी गीता-रहस्य सर्वोत्कृष्ट है जिसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

उनकी लिखी हुई सभी पुस्तकों का विवरण इस प्रकार है-

वेद काल का निर्णय (The Orion)
आर्यों का मूल निवास स्थान (The Arctic Home in the Vedas)
श्रीमद्भागवतगीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र
वेदों का काल-निर्णय और वेदांग ज्योतिष (Vedic Chronology & Vedang Jyotish)
हिन्दुत्व
श्यामजीकृष्ण वर्मा को लिखे तिलक के पत्र
उनकी समस्त पुस्तकें मराठी अँग्रेजी और हिन्दी में लोकमान्य तिलक मन्दिर, नारायण पैठ, पुणे से सर्वप्रथम प्रकाशित हुईं। बाद में उन्हें अन्य प्रकाशकों ने भी छापा।

गुरुवार, 19 जुलाई 2018

आइए जाने कितना दिलचस्प है इंसान का शरीर...

अद्भुत है इंसान का शरीर

*जबरदस्त फेफड़े*

हमारे फेफड़े हर दिन 20 लाख लीटर हवा को फिल्टर करते हैं. हमें इस बात की भनक भी नहीं लगती. फेफड़ों को अगर खींचा जाए तो यह टेनिस कोर्ट के एक हिस्से को ढंक देंगे.

*ऐसी और कोई फैक्ट्री नहीं*

हमारा शरीर हर सेकंड 2.5 करोड़ नई कोशिकाएं बनाता है. साथ ही, हर दिन 200 अरब से ज्यादा रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है. हर वक्त शरीर में 2500 अरब रक्त कोशिकाएं मौजूद होती हैं. एक बूंद खून में 25 करोड़ कोशिकाएं होती हैं.

*लाखों किलोमीटर की यात्रा*

इंसान का खून हर दिन शरीर में 1,92,000 किलोमीटर का सफर करता है. हमारे शरीर में औसतन 5.6 लीटर खून होता है जो हर 20 सेकेंड में एक बार पूरे शरीर में चक्कर काट लेता है.

*धड़कन, धड़कन*

एक स्वस्थ इंसान का हृदय हर दिन 1,00,000 बार धड़कता है. साल भर में यह 3 करोड़ से ज्यादा बार धड़क चुका होता है. दिल का पम्पिंग प्रेशर इतना तेज होता है कि वह खून को 30 फुट ऊपर उछाल सकता है.

*सारे कैमरे और दूरबीनें फेल*

इंसान की आंख एक करोड़ रंगों में बारीक से बारीक अंतर पहचान सकती है. फिलहाल दुनिया में ऐसी कोई मशीन नहीं है जो इसका मुकाबला कर सके.

*नाक में एंयर कंडीशनर*

हमारी नाक में प्राकृतिक एयर कंडीशनर होता है. यह गर्म हवा को ठंडा और ठंडी हवा को गर्म कर फेफड़ों तक पहुंचाता है.

*400 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार*

तंत्रिका तंत्र 400 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से शरीर के बाकी हिस्सों तक जरूरी निर्देश पहुंचाता है. इंसानी मस्तिष्क में 100 अरब से ज्यादा तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं.

*जबरदस्त मिश्रण*

शरीर में 70 फीसदी पानी होता है. इसके अलावा बड़ी मात्रा में कार्बन, जिंक, कोबाल्ट, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फेट, निकिल और सिलिकॉन होता है.

*बेजोड़ झींक*

झींकते समय बाहर निकले वाली हवा की रफ्तार 166 से 300 किलोमीटर प्रतिघंटा हो सकती है. आंखें खोलकर झींक मारना नामुमकिन है.

*बैक्टीरिया का गोदाम*

इंसान के वजन का 10 फीसदी हिस्सा, शरीर में मौजूद बैक्टीरिया की वजह से होता है. एक वर्ग इंच त्वचा में 3.2 करोड़ बैक्टीरिया होते हैं.

*ईएनटी की विचित्र दुनिया*

आंखें बचपन में ही पूरी तरह विकसित हो जाती हैं. बाद में उनमें कोई विकास नहीं होता. वहीं नाक और कान पूरी जिंदगी विकसित होते रहते हैं. कान लाखों आवाजों में अंतर पहचान सकते हैं. कान 1,000 से 50,000 हर्ट्ज के बीच की ध्वनि तरंगे सुनते हैं.

*दांत संभाल के*

इंसान के दांत चट्टान की तरह मजबूत होते हैं. लेकिन शरीर के दूसरे हिस्से अपनी मरम्मत खुद कर लेते हैं, वहीं दांत बीमार होने पर खुद को दुरुस्त नहीं कर पाते.

*मुंह में नमी*

इंसान के मुंह में हर दिन 1.7 लीटर लार बनती है. लार खाने को पचाने के साथ ही जीभ में मौजूद 10,000 से ज्यादा स्वाद ग्रंथियों को नम बनाए रखती है.

*झपकती पलकें*

वैज्ञानिकों को लगता है कि पलकें आंखों से पसीना बाहर निकालने और उनमें नमी बनाए रखने के लिए झपकती है. महिलाएं पुरुषों की तुलना में दोगुनी बार पलके झपकती हैं.

*नाखून भी कमाल के*

अंगूठे का नाखून सबसे धीमी रफ्तार से बढ़ता है. वहीं मध्यमा या मिडिल फिंगर का नाखून सबसे तेजी से बढ़ता है.

*तेज रफ्तार दाढ़ी*

पुरुषों में दाढ़ी के बाल सबसे तेजी से बढ़ते हैं. अगर कोई शख्स पूरी जिंदगी शेविंग न करे तो दाढ़ी 30 फुट लंबी हो सकती है.

*खाने का अंबार*

एक इंसान आम तौर पर जिंदगी के पांच साल खाना खाने में गुजार देता है. हम ताउम्र अपने वजन से 7,000 गुना ज्यादा भोजन खा चुके होते हैं.

*बाल गिरने से परेशान*

एक स्वस्थ इंसान के सिर से हर दिन 80 बाल झड़ते हैं.

*सपनों की दुनिया*

इंसान दुनिया में आने से पहले ही यानी मां के गर्भ में ही सपने देखना शुरू कर देता है. बच्चे का विकास वसंत में तेजी से होता है.

*नींद का महत्व*

नींद के दौरान इंसान की ऊर्जा जलती है. दिमाग अहम सूचनाओं को स्टोर करता है. शरीर को आराम मिलता है और रिपेयरिंग का काम भी होता है. नींद के ही दौरान शारीरिक विकास के लिए जिम्मेदार हार्मोन्स निकलते हैं.














 

बुधवार, 18 जुलाई 2018

निर्मित को नहीं निर्माता को प्रभावित कीजिए...

जिस पल आपकी मृत्यु हो जाती है, उसी पल से आपकी पहचान एक "बॉडी" बन जाती है। अरे "बॉडी" लेकर आइये, "बॉडी" को उठाइये, "बॉडी" को सूलाइये ऐसे शब्दो से आपको पूकारा जाता है, वे लोग भी आपको आपके नाम से नही पुकारते , जिन्हे प्रभावित करने के लिये आपने अपनी पूरी जिंदगी खर्च कर दी। इसीलिए "निर्मिती" को नहीं "निर्माता" को प्रभावित करने के लिये जीवन जियो। जीवन मे आने वाले हर चूनौती को स्वीकार करे। अपनी पसंद की चीजो के लिये खर्चा किजिये। इतना हंसिये के पेट दर्द हो जाये। आप कितना भी बूरा नाचते हो , फिर भी नाचिये। उस खूशी को महसूस किजिये। फोटोज् के लिये पागलों वाली पोज् दिजिये। बिलकुल छोटे बच्चे बन जाइयें क्योंकि मृत्यु जिंदगी का सबसे बड़ा लॉस नहीं है। लॉस तो वो है के आप जिंदा होकर भी आपके अंदर जिंदगी जीने की आस खत्म हो चूकी है। हर पल को खूशी से जीने को ही जिंदगी कहते है। "जिंदगी है छोटी, हर पल में खुश हूं,
काम में खुश हूं, आराम में खुश हू,
आज पनीर नहीं, दाल में ही खुश हूं,
आज गाड़ी नहीं, पैदल ही खुश हूं,
दोस्तों का साथ नहीं, अकेला ही खुश हूं,
आज कोई नाराज है, उसके इस अंदाज से ही खुश हूं,
जिस को देख नहीं सकता, उसकी आवाज से ही खुश हूं,
जिसको पा नहीं सकता, उसको सोच कर ही खुश हूं,
बीता हुआ कल जा चुका है, उसकी मीठी याद में ही खुश हूं,
आने वाले कल का पता नहीं, इंतजार में ही खुश हूं,
हंसता हुआ बीत रहा है पल, आज में ही खुश हूं,
जिंदगी है छोटी, हर पल में खुश हूं,
अगर दिल को छुआ, तो जवाब देना, वरना बिना जवाब के भी खुश हूं..!😊 कमल सिंघल 🙏

मंगलवार, 17 जुलाई 2018

क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान शब्द का जनक जन्म से एक कश्मीरी ब्राह्मण था...

"पाकिस्तान" शब्द का जनक सियालकोट का रहनेवाला 'मुहम्मद इकबाल' था।

जो कि जन्म से एक कश्मीरी ब्राह्मण था परन्तु बाद में मुसलमान बन गया था। ये वही मुहम्मद इकबाल है, जिसने प्रसिद्ध गीत "सारे जहाँ से अच्छा हिदोस्तान हमारा" लिखा हैं।

इसी इकबाल ने अपने गीत में एक जगह लिखा है कि "मजहब नहीं सिखाता... आपस में बैर रखना"

परन्तु इसी इकबाल ने अपनी एक किताब "कुल्लियाते इकबाल" में अपने बारे में लिखा है...

"मिरा बिनिगर कि दरहिन्दोस्तां दीगर नमी बीनी, बिरहमनजादए रम्ज आशनाए रूम औ तबरेज अस्त"
अर्थात
मुझे देखो... मेरे जैसा हिंदुस्तान में दूसरा कोई नहीं होगा..! क्योंकि मैं एक ब्राह्मण की औलाद हूँ। लेकिन मौलाना रूम और मौलाना तबरेज से प्रभावित होकर मुसलमान बन गया..!

कालांतर में यही इकबाल... मुस्लिम लीग का अध्यक्ष बन गया और हैरत कि बात हैं कि जो इकबाल "सारे जहाँ से अच्छा हिदोस्तान हमारा" लिखा और "मजहब नहीं सिखाता... आपस में बैर रखना" जैसे बोल बोले थे, उसी इकबाल ने... मुस्लिम लीग खिलाफत मूवमेंट के समय... 1930 के इलाहाबाद में मुस्लिमलीग के सम्मलेन में कहा था... "हो जाये अगर शाहे खुरासां का इशारा, सिजदा न करूं हिन्दोस्तां की नापाक जमीं पर... 

यानि

यदि तुर्की का खलीफा अब्दुल हमीद (जिसको अँगरेजों ने 1920 में गद्दी से उतार दिया था) इशारा कर दे... तो मैं इस "नापाक हिंदुस्तान" पर नमाज भी नहीं पढूंगा। बादमें... इसी "नापाक" शब्द का विपरीत शब्द लेकर "पाक" से "पाकिस्तान" बनाया गया...

जिसका शाब्दिक अर्थ हैं... (मुस्लिमों के लिए) पवित्र देश..!

कहने का तात्पर्य ये है कि हिन्दू बहुल क्षेत्र होने के कारण... मुस्लिमों को हिंदुस्तान "नापाक" लगता था... इसीलिए मुस्लिमों ने अपने लिए तथाकथित पवित्र देश "पाकिस्तान" बनवा लिया।

अब इस सारी कहानी में... समझने की बात यह है कि जब एक कश्मीरी ब्राह्मण के धर्म परिवर्तन करने के बाद... अपने देश और अपनी मातृभूमि के बारे में सोच... इतनी जहरीली हो सकती है... तो आज हिन्दुओं की अज्ञानता और उदासीनता का लाभ उठा कर... जकारिया नाईक जैसे.... समाज के दुश्मनों द्वारा हजारों-लाखों हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है... उसका परिणाम कितना भयानक हो सकता हैं।

ऐसे में मुझे एक मौलाना की वो प्रसिद्द उक्ति याद आ रही है... जिसमे उसने कहा था कि देखिये हमारे तो इतने इस्लामी देश हैं, इसीलिए अगर हमारे लिए जमीन तंग हो जाएगी तो हम किसी भी देश में जाकर कहेंगे "अस्सलामु अलैकुम" और वह कहेगा "वालेकुम अस्सलाम" साथ ही हमें भाई समझ कर अपना लेगा, लेकिन मैं हिन्दुओं से एक मासूम-सा सवाल पूछना चाहता हूँ कि उनके राम-राम का जवाब देने वाला कौन-सा देश है..?

इसलिए जो यह लेख पढ़ रहे हैं, उन सभी हिन्दू भाइयों-बहनों से निवेदन है कि जकारिया नायक जैसे क्षद्मजिहादी और इस्लाम का पर्दाफाश करने में हर प्रकार का सहयोग करें...

याद रखें कि अगर धर्म नहीं रहेगा तो देश भी नहीं रहेगा। क्योंकि देश और धर्म का अटूट सम्बन्ध हैं... जिस तरह धर्म के लिए देश की जरुरत होती हैं... ठीक उसी तरह देश की एकता के लिए भी धर्म की जरूरत होती हैं।

इसीलिए अगर हमारे हिन्दुस्थान को बचाना हैं तो जाति और क्षेत्रवाद का भेद भूलकर... कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और कच्छ से लेकर असम तक के सारे हिन्दुओं को एक होना ही होगा।

जय हिंदुत्व... जय हिन्दुराष्ट्र...

✊🏻 जय जय श्री राम 🚩

शनिवार, 14 जुलाई 2018

क्या हमारा #पहनावा सामने वाले #व्यवहार को प्रभावित करता है..?

बहुत से बुद्धिजीवियों को आपने यह कहता सुना होगा कि कपड़े कोई मायने नहीं रखते हैं... खासकर तब जब चर्चा का विषय महिलाओं से छेड़छाड़/बलात्कार का हो... लेकिन यह सरासर झूठ है... कपड़े ही व्यक्ति की विचारधारा एवं व्यक्तित्व को दर्शाते हैं... शायद कई लोगों को मेरी बात कड़वी एवं गलत लगे लेकिन यह सत्य है कि छेड़छाड़ एवं बलात्कार में कपड़े एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं...
अब इस विषय को थोड़ा घुमाते हैं... छेड़छाड़ केवल लड़कियों से ही नहीं की जाती... हर बार केवल लड़के ही किसी लड़की को फोन करके तंग नहीं करते... हर बार फेसबुक पर केवल लड़के ही  लड़कियों को  फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं भेजते... हर बार प्रपोज लड़के ही नहीं करते... ये सब हरकते लड़कियों द्वारा भी की जाती हैं... और यह सब करने का जोखिम हम तभी उठाते हैं, जब हमें सामने कुछ संभावना नजर आएं...
अब मैं मेरे निजी जीवन के माध्यम से आपको समझाता हूं... मैंने अपने जीवन में कभी किसी को प्रपोज नहीं किया... मुझे बहुत बार बिना किसी जान पहचान के लड़कियों के फोन मित्रता बढ़ाने हेतु आएं... कई बार लड़कियों द्वारा प्रेम प्रस्ताव मिला... कई लड़कियों ने मुझसे डबल मीनिंग में बात की... बहुत सी लड़कियों के Facebook पर फ्रेंड रिक्वेस्ट आई, उसके बाद मैसेंजर पर बातें हुई... इस तरह की काफी घटनाएं है और यह सब तब की हैं, जब मैं कहीं ना कहीं इन सब के लिए तैयार था... जब से मैंने सादा जीवन जीना शुरु किया, कुर्ते-पजामे पहनने शुरू किये, Facebook को भी आध्यात्मिक एवं देश भक्ति भावनाओं को साझा करने के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया तब से इन सभी घटनाओं पर पूर्ण विराम लग गया...
मेरे पहनावे को देख कर किसी लड़की के मन में इस तरह की भावना नहीं आती, कारण उसे लगता है कि यह इस तरह का लड़का नहीं हैं...
मैं इस पोस्ट से केवल यही समझाना चाहता हूं... मेरे कहने का केवल इतना-सा भाव है कि अगर मेरे 'लड़का' होने के बावजूद भी... मेर पहनावे के कारण लड़कियों के व्यवहार में परिवर्तन आता है तो लड़कियों के पहनावे से लड़कों के व्यवहार/मानसिकता में परिवर्तन आना स्वभाविक हैं...
इसलिए पहनावा सुंदर डालिए लेकिन सभ्य डालिए... आपके कपड़े ऐसे हो जिसे डालने के बाद आप सुंदर लगे, ना कि असभ्य/उत्तेजित... कपड़ों का आविष्कार बदन को ढकने के लिए किया गया था, दिखाने के लिए नहीं... बच्चों के माता-पिता से अनुरोध बच्चों के द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों का आंकलन कीजिए... उनकी T-Shirt  पर लिखी जाने वाली wording पर ध्यान दीजिए...
यकीन मानिए सभ्य कपड़ो में एक सुंदर लड़की को देखकर कोई भी लड़का उससे शादी करने की तो सोच सकता है लेकिन उसके मन में कोई गलत विचार नहीं आएगा और इसके विपरीत असभ्य कपड़ों में लड़की को देख कर कोई भी लड़का कुछ गलत करने की तो सोच सकता है लेकिन कभी भी उससे शादी करने की नहीं सोचेगा...
मेरे द्वारा लिखी गई इस पोस्ट में की गई गलतियों के लिए क्षमा🙏 आप सब से अनुरोध कृपया इस लेख के शब्दों को नहीं भावनाओं को पढ़ें...

✍🏻 कमल सिंघल🙏🏻
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शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

किसी इंसान कानखजूरा काट लेता है या कान में घुस जाता है तो क्या करना चाहिए? एक बार जरुर जान लें :-

गर्मियों का मौसम शुरू हो चुका है और जैसा की हम सभी जानते हैं इस मौसम में कीडे मकौड़े बाहर आते हैं। इसमें सबसे खतरनाक कनखूजरे को माना जाता है। कनखूजरे के बारे में ज्यादा लोगों को जानकारी नहीं होती। इसलिए अगर किसी को कनखूजरा काटता है तो मालूम नहीं होता की क्या करना चाहिए। इसलिए आज हम आपको बताएंगे की कनखजूरा के काटने या कान में घुसने पर क्या करना चाहिए। अमूमन देखा जाता है कि लोगों को जब कनखजूरा काट लेता है तो समझ में नहीं आता है कि क्या करना चाहिए। तो आइये आपको बता देते हैं कि कनखजूरा के काटने या कान में घुसने पर क्या करना चाहिए।

कनखजूरा के काटने या कान में घुसने पर क्या करें?

आपको बता दें कि कनखजूरा सांप की तरह ही जहरीला जानवर माना जाता है। कनखजूरा सांप की तरह ही काटने के बाद शरीर में जहर छोड़ता है। कनखजूरा के काटने पर इंसान को सांस लेने में काफी तकलीफ होती है। सांस में तकलीफ के अलावा शरीर में काफी दर्द भी होता है। लेकिन, आपको जानकर हैरानी होगी की कनखजूरा का काटना जानलेवा नहीं होता है। लेकिन, इस के काटने पर होने वाला दर्द कभी कभी काफी अधिक होता है जो कभी कभी बर्दास्त के बाहर हो जाता है।

लेकिन, अक्सर देखा जाता है कि कनखजूरा काटने के अलावा कान के रास्ते अंदर घुस जाता है। यह बेहद खतरनाक माना जाता है। दरअसल, कनखजूरा अक्सर अंधेरे में रहता है और इसी वजह से वह अक्सर कान में घुस जाता है। इसके अलावा, बरसात के मौसम में भी कनखजूरा बहुत निकलते हैं। कनखजूरे का कानों घुसना काफी दर्दनाक होता है। कनखजूरा इंसान के कान में चिपक जाता है जिसे निकालना काफी मुश्किल होता है। कनखजूरा के काटने पर उसका जहर शरीर में पहुंच जाता है और थकान के साथ साथ सांस लेने में तकलीफ होती है।

कनखजूरे काटने का इलाज और तरीका

आपको बता दें कि कनखजूरा के काटने या कान में घुसने पर क्या करना चाहिए। आज हम आपको बता देते हैं कि कनखजूरे काटने का इलाज और तरीका क्या है। अगर किसी के कान में कनखजूरा घुस जाए तो पानी में सेंधा नमक मिलाकर कान में डालने से वह मर जाता है। सेंधा नमक की वजह से वह मरकर कान से बाहर निकल जाता है। इसके अलावा, अगर कनखजूरा शरीर से चिपक जाए तो उसके मुंह पर चीनी डालने से वह शरीर को छोड़ देता है। इसी तरह अगर किसी को कनखजूरा काट ले तो हल्दी और सेंधा नमक का मिश्रण लेकर इसे गाय के घी में वहां पर लगाये।

ऐसा करने से कनखजूरा का विष खत्म हो जाता है। ये वो तरीके हैं जिनसे कनखजूरा के काटने या कान में घुसने पर इलाज किया जा सकता है। अगर आपके आस पास या घर में किसी को कनखजूरा के काट ले या कान में घुसने जाये तो ये उपाय करके उसे ठीक किया जा सकता है। आपको बता दें की कनखजूरा अगर इंसान को काटे तो यह जानलेवा नहीं होता, लेकिन इसके काटने के बाद अगर सही उपचार नहीं हुआ तो इंसान के लिए यह जानलेवा हो सकता है। लेकिन, अगर यह चूहों को काट ले तो 30 सेकंड में उसकी मौत हो जाती है।