बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

घर से भागी हुई लड़कियां...

अक्सर भागती हैं अपने ही घर से
बचकर...
छुपकर...
नजर बचाकर अपने ही घर से...

चुरा लेती हैं बहुत-सा छोटा-छोटा सामान
कुछ जेवर...
कुछ पैसे...
कुछ कपड़े...
कुछ तस्वीरें...

कुछ कागज खुद को 18 वर्ष की बड़ी लड़की साबित करने को...

और छोड़ जाती हैं... 
कुछ बड़ी बड़ी चीजें...
गठरी में कहां जगह बचती है!
कहां समा पाती है..!

भले वो ले नहीं जाती...
पर रहती भी कहां है..!

पिता की इज्जत
मां के संस्कार 
भाई का दुलार 
बहन की मनुहार 
सखियों के तेवर
असली वाले जेवर 
छूट जाते हैं अक्सर
या छोड़ जाती हैं..!

ये घर से भागी लड़कियां...

घर से भागी हुई लड़कियां...
अक्सर छोड़ जाती हैं बहुत कुछ...
घर छोड़ने के साथ...

वो छोड़ जाती हैं...
मां की ममता
पिता का दुलार 
बड़ा बौना बनाकर
अपने घर के किसी कोने में...

छोड़ जाती हैं कोई खत वहां...
जहां किसी की नजर पड़ जाएं...

छोड़ जाती हैं कुछ सवाल...
क्यों भागी..?
किसके साथ..?
और न जाने क्या-क्या...

छोड़ जाती हैं एक सवालिया निशान...
अपनी परवरिश पर भी...

दफ्न कर जाती हैं...
पिता की इज्जत...
मां की मुहल्ले में चलती आदर्शवादिता की जुबान को काट ले जाती हैं अपने साथ...

वो आग लगा जाती हैं अक्सर...
छोटी बहन के जीवन को भी...

और इस तरह...
घर बन जाता है...
कब्रगाह 
कत्लगाह 
और श्मशान
एक साथ...

एक ही पल में...
क्या से क्या बना देती हैं घर को...
घर से भागी हुई लड़कियां....

घर से भागी हुई लड़कियां...

घर से भागी हुई लड़कियां...
अक्सर भागती हैं...
बेघर हो जाने को...
और समझती हैं...
कि भागी घर बसाने को..!

भागती हैं...
बचपन की यादों से...
अपनी ही संतान के प्रेमविवाह के इरादों से...

ताउम्र भागती हैं अक्सर...
भागकर आने के उलाहने से...

चरित्रहीना के ताने से...

दहेज न ला पाने से...
रहती हैं अक्सर गुनाहगार की तरह...
सारी उम्र...

अक्सर भागने लगता है...
इनसे दूर...
इनको भगाकर लाने वाला...

और 
अक्सर हो जाती हैं बाजारू...
ये घर से भागी हुई लड़कियां...

घर से भागी हुई लड़कियां...

✍🏻 कनक 'सौम्या'