रविवार, 15 मार्च 2020

हिन्दू स्त्री दर्शन

करम योगिनी परम् पुनीता
मात हमारी भगवती सीता...!!

सीता केवल एक नाम नही है , कोई साधारण चरित्र नही है , जितना भी समझो उतनी ही गहराई में एक स्त्री के विभिन्न रूप देखने को मिलेंगे !

रामायण कब लिखा गया और आज हम 2019 में भी अनुभव करते हैं , लोग अक्सर इस प्रश्न का उत्तर नही दे पाते संस्कार किसे कहते हैं ?

संस्कार की परिभाषा समझनी है ?
माँ सीता का जीवन ही संस्कार है , उनकी जीवनी ही हिन्दू स्त्री दर्शन हैं, रघुकुल रीति ही हिन्दू सभ्यता की वो जड़ है जिसे हिलाना नामुमकिन है !

महलों में पली बढ़ी माँ सीता कभी महलों में नही रहीं, जानकी का मतलब है राजा जनक की पुत्री।

पूरी जिंदगी जानकी ने उस सुख सुविधा का भोग नही किया जिसकी वो उत्तराधिकारी थी।

संस्कार जानते हैं क्या होता है ?

लवकुश की माँ सीता ने ये नहीं कहा कि मिलते ही अपने पिता को युद्ध में परास्त कर देना, नही वितृष्णा, ईर्ष्या कभी व्यक्ति को आगे नही ले जाते।

सारी प्रजा का दुःख हरने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम एक ऐसे अभागे पति थे जिन्होंने प्रजा की सुख-शांति के लिए अपनी सुख-सुविधा का परित्याग किया।

जरा सोचिए जिसके लिए युद्ध लड़ के वापस लाये, स्वयंवर रचाया उसे विदा करते हुए महल से कितनी वेदना हुई होगी।

फिर वो रघुकुल कैसा जहाँ त्याग न हुए हों ?
वो हिन्दू संस्कृति कैसी जिसने अपना सर्वस्व न्यौछावर न कर दिया हो !

राम राज्य में प्रजा सर्वोच्च थी, राजा नहीं !
राम राज्य में बलिदान सर्वोच्च था, अपमान नहीं !
राम राज्य में विजय निश्चित थी, पराजय नहीं !
राम राज्य में एक भी विरोध का स्वर किसी के मुख से न आये ऐसे शासन की स्थापना थी।

ऐसा हो सका क्यों ?
क्योंकि करम योगिनी परम् पुनीता
प्रभु राम की पत्नी थीं माँ सीता !

राम आदर्श हैं, राम को आदर्श के उस प्रतिमान से नीचे लाकर सामान्य जन की तरह आज के संविधान के पैमाने पर तौलना हमारे संस्कारो की तौहीन है !

लेकिन एक बात हमेशा याद रखियेगा, राम आदर्श हैं लेकिन माँ सीता के बिना नहीं।

राम के पहले सिया तो आएगा, अगर राम सिया के वर नहीं हैं तो राम कुछ भी नही हैं !

सियावर रामचन्द्र ही पूरा नाम है और युगों-युगों तक इस नाम को कोई मिटाया नहीं जा सकता !

त्याग की देवी सीता
संस्कारो की जननी सीता
लव-कुश जैसे विद्वान बालको की माँ सीता

महल में पली महल में व्याही पर महल का जीवन कभी व्यतीत न करने वाली सीता ,

और पुरुषार्थ को चरितार्थ करते हुए प्रभु राम, अपनो का दिया वनवास, अपनी प्राणप्रिये के लिए युद्ध का शँखनाद और फिर प्रजा के द्वारा लोकलाज की उलाहना, निकृष्ट आरोप, राजगद्दी पर बैठे व्यक्ति का पूरे समाज को साथ ले चलने का दबाव और सीता की अग्निपरीक्षा।

एक स्त्री को क्या-क्या सहना पड़ता हैं, पेट मे लवकुश का अंश लिए वाल्मीकि आश्रम में रहना, उन्हें शिक्षा देना, संस्कार देना, पिता के प्रति प्रेमभाव का समर्पण, इतना सब होने के बावजूद राम का ही पूजन !

और अकेले श्री राम, जिसे प्राणों से बढ़ कर चाहा उस प्रेम को अपनी आँखों से विदा करना।

एक बात हमेशा याद रखियेगा...

प्रभु राम ने तो जल में अग्निपरीक्षा दे दी, उन्होंने समाज को भी उत्तर देकर सीता को निष्कलंक कर दिया और खुद सीता के बिना प्राण त्याग कर अपने प्रेम और पुरुषार्थ को भी सिद्ध कर दिया !

आज भी कुछ हिन्दू विवाहित स्त्रियाँ सीता की ही तरह रोज अग्नि में जल रहीं हैं, खुद को असहाय महसूस करती होंगी, आज करवाचौथ है पति के लिए निर्जला व्रत भी रहेंगी, आश्रम की कठिन जिंदगी में भी माँ सीता ने व्रत नहीं तोड़ा, प्रभु राम की आराधना की, अपने मन मे घृणा नहीं पैदा होने दी, बच्चों को ईर्ष्या नहीं सिखाई।

करवाचौथ के दिन अगर मन भारी लगे तो माँ सीता को याद करना, काश ऐसा युग आएगा....

जब स्त्री लाँछन मुक्त होगी !

जब पुरुष रावण पैदा नहीं होंगे, जब उनके अंदर भी केवल अग्निपरीक्षा लेने की हिम्मत नहीं बल्कि जल समाधि लेने की कुव्वत भी आएगी !

और ऐसा दिन आएगा !
क्योंकि हमारे संस्कार लवकुश जनने के हैं, हमारी माँ जानकी हैं, हमारी संस्कृति रघुकुल रीति पर चली हैं।

क्योंकि अयोध्या का वो मंदिर केवल मंदिर नहीं महल होगा।

कितने ही वर्ष बीत गए हो...

हम रघुकुल के तारे
मंदिर वहीं बनाएंगे...


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