मेघालय की पहाड़ियों में निवास करने वाला खासी समुदाय अपनी विशिष्ट पहचान के लिए विश्वविख्यात हैं। यदि हम उनके मूल विश्वासों और जीवन दर्शन की गहराई में जाएं, तो स्पष्ट होता है कि वे सनातन धर्म की व्यापक चेतना का ही एक अभिन्न और जीवंत अंग हैं।
मातृसत्तात्मक व्यवस्था: रामायण और महाभारत काल की प्रतिध्वनि...
खासी समुदाय की सबसे बड़ी विशेषता उनकी मातृसत्तात्मक व्यवस्था है, जहाँ वंश माँ के नाम से चलता हैं। आधुनिक युग में इसे 'अलग' माना जा सकता है किंतु यदि हम रामायण और महाभारत काल में जाएं तो यह व्यवस्था पूर्णतः सनातनी प्रतीत होती हैं।
* माता के नाम से पहचान: उस काल में वीरों और महापुरुषों की सबसे बड़ी पहचान उनकी माता ही होती थी। जैसे भगवान राम को 'कौशल्या नंदन', हनुमान जी को 'केसरी नंदन' या 'अंजनी पुत्र', अर्जुन को 'कुंती पुत्र' (कौन्तेय) और भीष्म पितामह को 'गंगा पुत्र' कहा जाता था।
* शक्ति का सम्मान: खासी समाज में वंश का माँ से चलना वास्तव में सनातन धर्म के उसी 'शक्ति' सिद्धांत का पालन हैं, जो नारी को सृजन का आधार मानता हैं। खासी परंपरा और प्राचीन भारतीय संस्कृति दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि संतान की मूल पहचान उसकी जननी से होती हैं।
19वीं शताब्दी: मिशनरियों का प्रहार और धर्म परिवर्तन...
1841 के आसपास, विदेशी मिशनरियों ने खासी पहाड़ियों में प्रवेश किया। उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य की आड़ में धर्म परिवर्तन का जो चक्र शुरू किया, उसने इस समुदाय की प्राचीन सनातनी कड़ियों को तोड़ने का प्रयास किया।
* सांस्कृतिक प्रहार: मिशनरियों ने खासी समुदाय की मातृशक्ति आधारित परंपराओं और उनके प्राकृतिक पूजा विधान को 'पिछड़ा' बताकर उन्हें अपनी जड़ों से काटने का प्रयास किया। इससे हज़ारों वर्ष पुरानी एक महान सांस्कृतिक निरंतरता को गहरी क्षति पहुँची।
वर्तमान आवश्यकता: अपनी जड़ों की ओर 'गृह वापसी'
आज के बदलते परिवेश में अपनी खोई हुई पहचान को वापस पाने की एक नई लहर देखी जा रही हैं। 'गृह वापसी' धर्म का परिवर्तन नहीं..! बल्कि अपनी उस मूल आध्यात्मिक विरासत से पुनः जुड़ने की प्रक्रिया हैं, जिसे विदेशी शक्तियों ने धुंधला कर दिया था।
* अस्तित्व की रक्षा: अपनी भाषा, लोक कथाओं और कौशल्या-नंदन जैसी गौरवशाली परंपराओं को बचाने के लिए यह आवश्यक है कि खासी समुदाय अपने मूल सनातनी स्वरूप को पुनः पहचानें...
सेंग खासी और सांस्कृतिक पुनरुत्थान...
'सेंग खासी' जैसे संगठनों और बाबू जीबन रॉय जैसे महापुरुषों ने हमेशा यह सिखाया कि खासी परंपराएं वास्तव में सनातन धर्म का ही विस्तार हैं। उन्होंने रामायण का खासी में अनुवाद कर समाज को यह याद दिलाया कि उनकी रगों में वही सांस्कृतिक रक्त प्रवाहित हो रहा हैं, जो शेष भारत में हैं।
खासी समुदाय की आत्मा आज भी उन पवित्र उपवनों और माता के प्रति अगाध सम्मान में बसती हैं, जो सनातन भारत की पहचान हैं। विदेशी मिशनरियों द्वारा थोपे गए विचारों को त्यागकर, अपनी प्राचीन जड़ों की ओर लौटना ही इस वीर समुदाय के उज्ज्वल और गौरवमयी भविष्य का एकमात्र मार्ग हैं।
🙏🏻 जय सनातन 🕉️ जय सियाराम ⛳
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